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महाजनवंश मुक्तावली दयाधर्मका उपदेश करणे लगे, तब अग्निहोत्री ब्राह्मण गौतमके बहुतसे गोत्री, सगे मुसरे, साले, मामा, फुफा, वगैरह तथा पांचसय मुनियोंले सगे, कुटुम्बी वगैरह, गौतमकों, देख, वेद पाठी यज्ञका निर्धार करणे आए, गौतमने न्याय सूत्रसें. सबोंके मनमें. दयाका अंकुर बोदिया, यज्ञ याजन पूजायां. श्री जिनराजके मूर्तिकी पूजा है सो गृहस्थोंके ताई दयाधर्म रूपयज्ञ है, श्री प्रश्न व्याकरण सूत्रमें दयाके साठ नाम, जिसमें पूजा है सो दया है, तब उन्होंने यज्ञका स्वरूप समझा, पंचेद्री जीवोंका हणना, यज्ञ छोडा, सम्यक्त्व युक्तव्रत धारी ब्राह्मण हुए, उह श्रीमालनगरके होणेसें, श्रीमाली ब्राह्मण दया धर्मी संज्ञा हुई. बाकी पंच गौड देश वासी. तथा पंच द्राविड़ देशवासी, जो जो ऋषि उस यज्ञमें, हाजिरथे, उन्होंने तो जीवकों होमणेका यज्ञ छोडा, और मांस मदिरा पीणा त्यागकर दिया, गौतमके चरण पूजणे लगे, सब जीवोंको यथास्थान पहुंचाया. उहा सवालक्ष राजपूतोंने श्री मल्लराजाके साथ, जैनधर्म धारण किया, उन श्रीमालोंकी एकसौ पैंतीस जातस्थापन हुई, पंचाल देशी (पंजाब ) बंगदेशी कन्नौजदेशी सरबरिये इत्यादि ऋषि विप्र जो यज्ञमें नहीं आए थे, वह सब मांसाहारी ही रहै, क्योंके वेदका यज्ञ तो, जैनाचार्योने, प्रायः आर्या वर्तमें वन्द कर दिया, तथापि वह ब्राम्हण तो, मांस खातेही रहै, दायमा गौड, गूजर गौड, संखवाल, पारीक, खण्डेलवाल, सारस्वत, और वाघड़, कर दिया तथा वह ब्राम्हण तो इत्यादिकोंने, गौतमके उपदेशसें, मांसमदिराका खान पान करणा यज्ञ छोड़ा, इस तरह राजपूत ब्राह्मण दयाधर्मी गुरू गौतमके सेवक हुए, पूजा गौतमकी करणे लगे, उसके पीछे मुल्क २ में अलग २ वसणेसें श्रीमाली ब्राह्मणोंकी ४ शाखा फंट गई मारवाड़ी १ में वाड़ी २ लटकण ३ और ऋषि ॥ इस यज्ञमें सैंधवारण्यवासी (सिन्ध देशके जंगलमें रहणेवाले ) पांच हजार ब्राम्हणोंकू गौतमका उपदेश कर्मयोग नहीं रुचा वैदोक्त पुरोडासा खाणेको यज्ञक्रिया अवादिक हवनकों सत्य मानते गौतमकी पूजाको व सत्कारकों नहीं सहते गौतमकी निंदा करणे लगे तब श्रीमल्ल राजाके हुक्मसें सर्वतत्रस्थ ब्राम्हणोंने ब्रम्हकर्म, रहित जांण, आर्यबेदके बाहिर किया रावणके दिग्विजय