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महाजनवंश मुक्तावली
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समय पर्वत ब्राम्हणसें पशुवधरूप यज्ञ प्रारम्भ हुआ आर्यवेदो में मांसाहा रियोंनें हिंसक श्रुतियें वणाकर मिला दी उव्हट महीधर सायन आदिक भाष्यकर्त्ताओंने भी वेदोंका अर्थ पशुवध रूप यज्ञ कर मांस भक्षण लिखा इसलिए श्रीमालमें बहुतोंकी सम्मती गौतम के सत्य दयाधर्म पर ठहर गई वो विप्र पीछे सैंधवारण्यको चले गये खेती करणे लगे भाटी राजपूत जो सिन्धुदेशमें तथा लबाणे जो सिन्धुदेशमें दरियावकी मच्छियों को मुकाकर वेचते थे उन्होंके गुरू बण गये अब भी उन्होंके गुरू यही हैं जब सम्बत् सतरहमें औसवाल लोक सिन्ध देशसें कच्छ देशमें आए तब कईयक भाटीये लत्राणे कच्छ में आवसे, उन्होंको वल्लभाचार्यजी गुसांईजीने, वह व्यापार छुडाकर, व्यापारी वणादिया, जो अब भाटिया वजते हैं, अब थोड़े ही अरसेमें, श्रीमल्लराजाकी राजधानी पर सिरोही गढके राजा पमारका पुत्र, भीमशेन, राजपूतोंको संग ले, श्रीमाल नगरीको घेरलिया, तब राजा श्रीमलनें विचारा मैं वृद्ध हूं पुत्र मेरे है नहीं, एक कन्या लक्ष्मी है, में युद्ध करणेके समर्थ हूं मगर युद्धमें लाखों जीवोंका संहार करणा, आखिर तो कोई दूसरा ही राज्य करेगा, जीव वधका पाप मुझे भोगणा होगा, ये घर पर गंगा, आगई है, पुत्री देकर पुत्र गोद ले लेणा, दुरस्त है, ऐसा विचार राजा श्रीमलने अपने प्रधान सुबुद्धिके संग भीमसेंन को कहला भेजा के मेरी पुत्री आपको दी, व्याह करके हथलेवे में श्रीमाल नगरका राज्य दिया, राजा श्रीमल्ल सब राजरीती सत्रोंका कुरव कायदामान मुलायजा पुन्य दान किए हुए ग्रांम मुसद्दियोंकी खातरी सत्र गुप्त रहस्य, जामातको सिखलाते ५ वर्ष श्रावक धर्म पालते राज्यमें रहै तब लक्ष्मीराणीके दो पुत्र हुए ऊपलदेव १ और आसल २ और आसपाल पीछे हुआ ३ राजा भीमसेंन आसलकों नानेके गोद दिया और राज्य का हक्क आसलकों कर दिया आसलका नानेके नामसे वोही श्रीमाल गोत्र रहा वाद श्रीमल्ल राजा जामात की वेटीकी आज्ञा लेकर गौतम पास जाके राजग्रहीमें दीक्षा लेकर तपकर कवल ज्ञानपाय मोक्ष गये, भीमसेनका मत वाममार्ग था, ऊपल और आसपाल वाममार्ग मानते रहै आसल फक्त जैन नामधारी, नानेके नामपर रहा, जैनधर्मकी शिक्षाचार