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महाजनवंश मुक्तावली हार, नेतजिमावे चरमो, बिन मतलब कोई यार, राबन पावे राजिया, । १। यह वचन सुनते ही, सूंडाजीके चरणोंमें गिरा, देपाल बड़ा दुखी होकर कहने लगा, हे गुरू परमात्मा पुत्रके बिना मेरा, और स्त्रीका, प्राण निकल जायगा, इसवास्ते आप कृपाकरके, बडे गुरू महाराजके पास ले चलो, तब सूंडाजी संग लेकर गुरूके पास आए, गुरूसें देपाल मंत्रीनें, बड़े दीनश्वरसे निवेदन करा तब गुरू बोले, जो तूं, वृहद्गच्छका जैनी श्रावक बने तो, पुत्र मिला देता हूं, देपालने कहा इसी समय, गुरूंने कहा, पुत्र मिले पीछै तब गुरूनें कहा जातं, दक्षिण दिशाके उद्यानमें, तेरा पुत्र सुखसें, बैठा है, देपाल और शिष्य व बहुत लोग, उसके संग गये,
आगे शासन देवी सिंहणीके रूपसें, उस लड़केको स्तनपान करा रही है, देखते ही, देपाल डरता हुआ, पीछे आकर गुरूसें अरज करी, तब गुरूनें कहा, तूं निशंक चला जा, उस नाहरीकों कहना श्रीमान देवसूरिःका, ' मैं श्रावक हूं, मेरा पुत्र पीछादे, इतना कहते ही, तुझें पुत्र दे देगी, इतना सुण, साहसकर गया, तब नाहरणी गोदमें पुत्रको लेकर बैठी है, देपाल हिम्मत वचन गुरूसें, नाहरणी पास जाके, गुरूके वचन कह सुनाये, तब नाहरणीनें, देपालकों पुत्र पीछा दिया, और आकाशमें जय २ ध्वनि होने लगी, बहुत हर्षके साथ अपना बडा भाग्योदय मानता, सपरिवार, गुरूके पास जाकर, जैनधर्मी भया, गुरूने उस आसधीरका, नाहर गोत्र स्थापित करा मानदेव सूरि कोटिक गच्छ चन्द्र कुल वज्रशाखाके आचार्य थे, इन्होंके शन्तान जिनेश्वर सूरिकों खरतर विरुद मिला, मूलगच्छ खरतर देवी इन्होंकी शासन देवी व्याघ्री है, बीकानेरादिक मारवाड़के नाहर अभी भी खरतर गच्छमें है। .
(छाजेहड़ गोत्र ) राठौड़ राजपूत धांधल रामदेव १ पुत्र काजल, संवत विक्रम १२१५ में श्रीजिनचन्द्र सूरिः मणिधारी खरतर गच्छा चार्य, सबीयाण गढ़में पधारे,
१ विद्यमान समयमें सताब चन्दजी नाहरके पुत्र मुरसिदा बादमें बडे श्रीमन्त दातार, अंग्रेज सरकार के माननीय, बुद्धिवन्त, मुन्नीलाल पूरणचन्द वगैरह जयवन्त हैं, ।