Book Title: Mahajan Vansh Muktavali
Author(s): Ramlal Gani
Publisher: Amar Balchandra

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Page 136
________________ १०० महाजनवंश मुक्तावली सो भीनमालके राजा कनकसीके गोद दिया. सालो ३६ समरथ, ३७ करमण ३८ वोहत्थ ३९ यहांसें भीन मालका राज्य सिरोहीवाले इन्होके परिवार वालोंने दाब लिया, यहां ४ पीढी तक भीनमाल और ओसियांका सिरोहीका एक राजाही हुआ, ४० वीरधवल नाणाने पैदा हुआ इस समय विक्रमादित्य पमार उजैणमें राजा हुआ. इसके वहिनका बेटा, भाणजा, सालिवाहन प्रतिष्ठान पुर (महेश्वर) का राजा सका, चलाया, ये राजा जैन था, उन्होकी शन्तान पहले महेश्वर, तथा गुजरात भावनगर में, पालीताणे राज्य करते हैं, । यहां से व्यापार करणे लगे ४० वीरधवल ४१ पुन्य पाल ४२ देवराज ४३ सुनखत्त ४४ जीवचन्द ४५ वेलराज ४६ आसघर ४७ उद्यसी ४८ रुपसी ४९ मलसी ५० नरभ्रम ५१ श्रवण ५२ समरसी ५३ सावंतसी १४ सहजपाल ५५ राजसी ५६ मानसी ५७ उदयमी ५८ विमलसी ५९ नरसी ६० हरसी ६९ हरराज ६२ धनराज ६३ पेमराज मुखराजभाई ६४ पेमके थानसी ६५ वैरसी ६६ करमसी व्यापार भी करता और वैद्यविद्या भी करणे लगा लोकवेद २ कहते ६७ धरमसी ६८ पुनसी ६९ मानसी ७० देवदत्त ७१ दुलहा सं. १२०१ में चित्तोड़के राणा भीमसीकी राणीके आंखमें, आकका दूध गिर गया, तब दुलहाको और वेद्य नाम धराते हो राणीजीकी आंख अच्छी करो, बुलवाया, कहा तुम तब दुलहा बोला, अभी दवा लाता हूं, वो चौमासा श्रीजिनदत्तसूरिः जीका चित्तोड़म था, गुरूके पास जाके, अरज करी, तब गुरूने कहा तुमारे पोते दो हैं, सो एकको, हमारा श्रावक करो तो तत्काल भाज्ञ खोल देता हूं, दुलहेने कबूल करा तब गुरू बोले जाओ जो तुम लगाओगे उससे - तत्काल सिद्धी होगी दुलहेजीनें घीमें गुड़ मिलाके आंखम लगवाया, तत्काल आंख अच्छी होगई, तब राणाजीनें कुरव बढ़ाकर, वैद्य पदवी दी यहां श्रेष्ठ गोत्र बदलके वैद गोत्र हुआ, दुलहेके ७२ वर्द्धमान ७३ सच्चा तथा शिवदेव शिवदेवको जिनदत्तसूरिःका वासक्षेप दिलाकर दिया. वो वर्द्धमानवेदकान्हासर, अजीम खरतरगच्छ में कर गञ्ज, मारवाड़, वगैरह देशोंमें, अभी चिरजीवी है सच्चाके ७४

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