________________
१०२
महाजनवंश मुक्तावली
ठाकुर वजते हैं, वस ये आखिरी जात हैं ये विद्यासागर दुढियोंकी तरह क्रिया कष्ट दिखाते बृहद्रच्छी खरतरादि गच्छोंके, प्रतिबोधे, राजन्य वंशियोंको, अपने पक्षमें करते गया।
( विज्ञापन) - आसवन्स रत्नागर सागर है मेरा ये इतिहासक ग्रंथ गागरतुल्य है इसमें कहां तक समावे लेकिन तथापि जो कुछ इतिहास मिला. उसकों संग्रह कर के अनेक इतिहास रत्नोंसे इस ग्रंथ गागरको अश्वपति महाजनोंके गुण रत्नमें भरके मैंने पूर्ण कलश करलिया और महाजनोंकी नाम श्रेणि रूप मुक्तावली इस कलसकों पहराकर जैनधर्मरूपकमल पुष्पपर विराजमान अल्प बुद्धिमें करा है, जो कोई भूल चूक अधिक कम लिखा होय, सर्व श्री संघमे क्षमा मांगता हूं ॥ आपश्री संघका सुनिजर वांछक, उ । श्री रामलालगणिः दन्तकथामें सुणां है के एक भोजकने अश्वपतियोंके १४४४ नख लिखे ... घरपर आया स्त्रीने पछा सब जातलिखली, भोजक बोला, हां, तब बोली, मेरे पीहरके, डोसी जात असपत है, देखो तुम्हनें लिखाया नहीं, तब देखा तो डोसीका नाम नहीं, भोजक हारके बोला, और लिखू डोसी, फेर घणाई होसी सच्च हैं मूलगोत्र तो थोड़े, लेकिन मगर कोई व्यापार, कोई गांमके नांमसें, कोई राजाओंकी नौकरीसें, खजानेका कामसें खजानची, कोठारी, मुसरफ, दफ्तरी, वगसी,. हीरेजीकी शन्तान, हीरावत, इत्यादि पिताओंके नामसे, लेखणिया, कानूगा, निरखी, इत्यादि राजाओंकी तरफसें इनायत होके, जात पड़ी, सिंघवी, भण्डारी, इत्यादि फिर मुल्कोंके नामसे, मरोठी, फलोधिये, रामपुरिये, पूग. लिये, नागोरी, मेड़तवाल, रूणवाल, इत्यादि बहुत फिरघीया तेलिया, भुगड़ी, बलाई, चंडालिया, वाक्चार, बांभी, ये सब कारणोंसें नख हुआ हैं, ओसवालोंमें सैकड़ों गोत निज जात राजपूतोंसें भी विक्षात है, राठोड़, सीसो. दिया, सांखला, कछावा, इत्यादि, अनेक जांण लेणा, इसवास्ते २ हजार नख होयगे, अठारह जातके नख शाखा तो कवलागच्छ प्रतिबोधक है, ६०० नख खरतर गच्छ प्रतिबोध कहै बाकी नख, खरतरके भाई, मल