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महाजनवंश मुक्तावली.
(कांकरिया गोत्र) कंकरावत गांमका खेमटरावका पुत्र, राव भीमसी, पड़िहार, राजपूत, चित्तोडके राणाका सामंत वह राणाजीका हुक्म मानें नहीं, और न नौकरीमें जावै राणाजीनें तलब करा लेकिन गया नहीं, तब राणेजीने इसको पकड़ने शेन्या भेनी, सं. ११४२ में खरतर गच्छाचार्य श्रीजिन वल्लभ सरिः भाग्य योग ककरा गांममें पधारे, राव भीमसी, राणेजीके क्रोधका समाचार कहा, गुरूनें कहा, सैन्या यहां आवेगी, उसका में प्रयत्न कर दूंगा लेकिन तुम हमारे श्रावक जैनी हो जावो तो, भीमसीने श्रावक ब्रत लिया, तब गुरूनें, कांकेर बहुतसे मंगवाये, और उस पर दृष्टि पास करा और राव भीमकों कहा के, जिससमय, राणे जीकी शेन्या आबै, उस समय, तोपों पर बन्दूकों पर तलवार वगैरह शस्त्रों पर, राणेनीकी सेन्या पर, ये कांकरे डाल देना, सो सत्र शक्ति हीन हो जायगे, और में मास कल्प यहां धर्म ध्यानसे करूंगा, शेन्या आने पर अपने विश्वासी ब्राह्मन पोकरनेकों देकर, वह कांकरे हर शस्त्र अस्त्र फोजी लोकों पर डलवाये, सब तोप, बन्दूक छूटनेसें रह गये, तरवारसे एक पत्ता भी नहीं कटे, तब निरास होकर, शेन्याके लोकोंनें, राणाजीकों लिखा, राणानीमें, सात गुना माफ कर दिया, और तुम्हारी नौकरी माफ तुम्हारे हमारे मध्य परमेश्वर है, इत्यादि खातिरीसें खास रुक्का लिखा, तब राव भीमसिंहनें गुरूकी आज्ञा मांग चित्तोड़ गया, सणाजीने सत्कार किया, सब हाल पूछा, तब राव भीम सिंह बोला, गुरुश्री जिन वल्लभ सूरिःका, कांकरिया करामाती है, मेरेमें तो अकड़ाई है, उस दिनसें कंकरावत गांमसें कांकरेके मंत्र अतिशयसें, कांकरिया गोत्र, हुआ, मूल गच्छ खरतर,।
(आबेड़ा तथा खटोल गोत्र) .. मारवाड़ गांम खाटूका चौहाण राजपूत आडपायत सिंह, १ बुधसिंह २ थे उन्होकी सं. १२०१ में श्री जिन दत्त सूरिः नें लक्ष्मी कामना पूर्ण कर जैनी करा, आडपायतरा आबेड़ा, बुधसिंहका पुत्र खांदगांव, से खटेड हुआ,