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महाजनवंश मुक्तावली. इन्होनें ठाकुर वेगेनीको कही, उसी समय सपरिवार आके मिथ्यात्व त्यागके जिन धर्मी हुए, रूंण गामके नामसें रूण वाल गोत्र हुआ, गुरूने वेगेनीकों उपसर्ग हरस्तोत्रका, कल्प साधन बतलाया, दूध घृत चावल मिश्रीकी क्षीर खाकर, एक वर्खेत, अरण्य वास, एकान्त ध्यान, सवालक्ष करना, बतलाया गुरू विहार कर गये सं. १२०२ में रूण वाल गोत्र हुआ ६ महिना साधनासें, एक महिष जितना बली हो गये, गुरूदेव सं. १२ ११ में अनमेरमें, देव लोक हुए, तब गुरू महाराजके प्रेमी, जो विमानक वासी देव हुए थे, उन्होने आकर सर्व खरतर गच्छके संघको कहा तुम्हारे गुरुदेवसो धर्मदेव लोकमें, चार पल्पकी आयुसे, टक्कलविमानमें, देवता हुए हैं, तब संघनें कहा, श्रीमंधर स्वामीसें पूछ के, निश्चय कर दो, गुरू महाराज कितनें भवसें, मुक्ति सिधायगें, तब वह देवता, महा विदेह पुंडरीकणी नगरीमें, श्री सीमंधर भगवानकों, वंदन स्तवन कर, खड़ा रहा, तब श्रीमंधर जिनेश्वरने दो गाथा कही, वह गाथा, गुर्खा वली, तथा गणधर पद वृत्ति प्रमुख ग्रंथोंमें दरज है, परमार्थ उसका ऐसा है, टक्कल विमानसें-चवके तुम्हारे गुरू, महाविदेह क्षेत्रमें, श्रीमन्त कुलमें जन्म लेकर, एक भवावतारी, उहांसे दीक्षाले, केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष होयगे वह देवता, यहां सर्व खरतर संघको, वह गाथा श्रीमंधर स्वामीकी कही सुनाई, तब सर्व संघनें, जगह २, ग्राम २ नगर २ में, गुरूके चरण थापना कर पूजने लगे, धर्म दाता सम्यक्त्व व्रत देणेके, उपकारी, जिन्होंने लाखोंजीवोंको, जिन धर्म देकर, तार दिया, इन्होंके पाट मणिधारी श्री जिन चन्द्रसूरिः विरानै, वह गुरू रूण पधारे, तब वेगानीने पुत्रकी वीनती करी, गुरूने क्षेत्रपालसे पूछी, खोड़िये क्षेत्र पालनें, जो विधी कही, चक्रेश्वरी देवीकी पूजा, बतलाई, चैत्र सुदी आशोज सुदी, अष्टमी, नोरेल चढ़ाकर, लपसीका, नैवेद्य करनेसें, पुत्र होगा, वेगेजीके पुत्र ४ हुए दो पुत्रकी शन्तान नागोरमें सं. १९७७ में लोढा तपगच्छियोंकी बेटी ब्याही थी, पार्श्व चन्द्र सूरिःने, तपागच्छमेंसे अलग सम्प्रदाय निकाली, तब वेगाणी २ पुत्रोंकी शन्तान, उस सम्प्रदायकों मानने लगी, गुरू खरतर को भी मानते हैं, मूल गच्छ खरतर, बीकानेर वगैरहमें, बसते हैं।