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महाजनवंश मुक्तावली खांन सुलतानकों, मार डाला था, ये खबर डूंगरजीको हुई, तब खरतर गच्छा. चार्य, दादासाहिब श्रीजिन कुशलसूरजीके शरणागत हुए, गुरूने कहा, जो तुम हमारे श्रावक बणो तो, बादशाह तुम्हारे सामने आकर, अभी, आजीजी करणे लगे, डूंगर सिंहजी, अपणे कुटुम्ब समेत, कुशल सूरिदादासाहिबके, श्रावक.. हुए, रातकों बादशाह अपणे महलमें सूतेकों दादासाहिबनें वीरकों हुक्म देकर, उपासरेमें पलंग समेत उठाकर बुलाया, राव डूंगजी उहां बैठे थे, ये चमत्कार देखणेको डूंगजीने बादशाहसूतेकों जगाया, बादशाह जागकर देखे, तो,. कहांका कहांमें आगया, तब डूंगजी बोले, अहो दिल्लीपति, दिल्ली तखतके. मालिक, आपनें तो हमको पकड़नेको फौज भेजी, सो तो अभी यहां पहुं-- चीही नहीं है, और मैंने तो तुम्हें कैद करवाके मंगालिया है, तब बादशाहनें पूछा ये वस्ती कौनसी है, तुम कौंण हो, और मुझे कैसे बुलाया, तब डूंग-- जी बोले, देख मेरे जागती कला जागती जोत, सद्गुरूका मेरे शिर पर हाथ है, तूं मेरा क्या कर सक्ता है, बादशाहने, उठके गुरूमहाराजके चरणोंमें, अपना ताज रक्खा, और बोला, अय परवर्दिगार खुदाई कुदरत तुम्हें मुबारक है, मुझे क्या हुक्म है गुरूनें कहा, डूंगजीके परिवारकों, कभी कड़ी नजर नहीं देखणा, दुसरे तेरे राज्यमें जैनधर्मवालों पर कभी जुल्मीपणा मुसल्मीन करणा नहीं, और हमारे श्रावकोंको, हर व्यापार बादशाही फरमाया जावै, बादशाहने अजब कुदरत देख, सब करणा कबूल करा तब गुरूने कहा, जा पलंग पर बैठ, आंख मूंचले, उसी समय दिल्ली दाखल कर दिया, उस दिनसें, सेवड़ोकी कदम पोशी सब जात करणे लगी, डूंगजीसे, डागा गोत्र, प्रसिद्ध हुआ, राजाजीके राजाणी, पूंजेनीसें पूंजाणी, इन्हीं डागोंकी, शन्तान, जेसलमेर केइवसे, वो जेसलमेरिया वजणे लगे, मूलगच्छ खरतर,. सं. विक्रम १३८१ में डागा गोत्र हुआ, ।
(श्रीपति ढहा तिलोरा गोत्र ) विक्रम सं. ११०१ में गोढ़वाड़ देशमें नाणा वेड़ा नगरमें, पाटण नगर का राजा, सोलंखी राजपूत, सिद्धराज जयसिंहके पुत्र, गोविन्द चन्दको,. खरतर गच्छी श्री जिनेश्वर सूरिः, खरतर विरुद्ध पाने वालेने, धर्म तत्वका