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. महाजनवंश मुक्तावली . "फिर भी इस देवीके लोग उपासक होकर जीवहिंसा करणे न लग जावै, ऐसा विचार अपने पुत्र छजू कुमारको हुक्म दिया के, जाओ, कुमार इस देवीकी मूर्तिकों, जायल नगरके कुओमें, जल शरण करदो, छज कुमार, परम सम्यक्त्वीने वैसा ही करा, और अपने पुत्र परिवारकों, हुक्म दिया के, आज पीछे, मेरे शन्तान कभी कँएको झांखके मत देखणा, और न देवीकी पूजा करणी, तबसें छजूजीके छजलाणी गोत्रवाले, ये दोनों काम नहीं करते, फिर इन्होंका परिवार बहुत फैला, जिसमें एकशेर सिंह नामका पुत्र नागोर नगरमें, बडा घोड़ेका शौखीन था, उसकी औलाद घोड़ाबन कहलाये, एक क्षातमें लिखा है कि, रावत वीरसिंह राजपूतोंमें, गौड राजपूत थे, इसवास्ते छजूजी छजलांणी दुसरा पुत्र वैसालके गौड़ावत कहलाये, जरूर जातके गौड ही थे, घोडावत कहणे लगे, प्रथम गच्छ रुद्रपल्ली खरतर पाछै दुसरा गच्छ सं. १५०० सेमें मानने लगे, छजूजीका बनाया हुआ एक कवित्त भी, हमकों याद है, पिताके जीते बनाया है, ( कवित्त ) नंदनकी नवरही वीसलकी वीसर ही रावणकी सब रही पीछे पछताओगे, उततेन लाए आथ इततेन चले साथ इतहीकी जोरी तोरी इत ही गंमाओगे, हेमचीर घोड़ा हाथी काहूकेन चले साथी वाटके बटाऊ जैसे कल ही उठ जाओगे, कहत हैं छजू कुमार सुण हो मायाके यार वंधी मुठ्ठी आये हो पसारे हाथ जाओगे, । १। धन्य है राज रिद्धी भोगते भी चित्त मैं कैसा वैराग्य था।
(कठोतिया गोत्र ) . जायल नगरके शमीप कठोती ग्राम है, उहांपर अजमेरा ब्राह्मण रहता था, उसकों भगंदरका रोग था, सं. ११७६ में श्रीजिनदत्तसूरिने उसकों, मंत्र शक्तिसें, आराम कर उसकों जैन महाजन करा कठोतिया वजणे लगे, गच्छ खरतर ।
(भूतडिया गोत्र ) सं. विक्रम १०७९ में सरसा पत्तनं जंगल देशमें, कछावा राना दुर्जन सिंघके राज्यमें, ब्राह्मन लोक वाममार्गीथे, सो एक दिन आसोज वदी चतु