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महाजनवंश मुक्तावली . ३३ साव सुखोंसे गुलगुलिया २१ गूगलिया २२ भटनेरा २३ चौधरी २४' चोरडियोंमेंसें २४ फेर निकले ये सब गोत्र राठोड़ खरहत्थके ४८ गोत्र सगे भाई गच्छमूल खरतर ५० मा ओस्तवाल पारखोंसे ये सब जैन कानफरेंसकी रिपोर्टसें मिलाके श्रीजीके कारखानेसे मिलाके लिखे हैं १८ तीर्थ भाई कांकरिया १ सेल्होत २ भटाकिया ३ बूबकिया ४ खूतड़ा ५ नारेलिया ६ सिन्दूरिया ७ मुंधडा ८ नीवाणिया ९ बावेल १० काकडा ११ फोकटिया
१२ इत्यादि इन सबोंका मूलगच्छ खरतर है। . . ... (भणसाली २ चंडालिया भूरा वद्धाणी) - लोद्रवपुर पट्टण जो कि जेसलमेरसें ५ कोस है उहांका राजा यदुवंशी धाराजी, भाटी उनके पुत्र सगर, सगरके श्रीधर, राजधर दो पुत्र थे सगर युवराज पदमैं था सम्बत् ११९६ युगप्रधान श्रीजिन दत्तसूरिःलोद्रव पत्तन पास विक्रमपुर पत्तनमैं थे सगर युगराजकी माताको ब्रह्म राक्षस लगा हुआ था, सो अगम बात कहदेती, वेद पढ़ती, सन्ध्या तर्पण करती, पवित्रता मैं मग्न कई दिनों भोजन नहीं करती, और जब खाणे बैठती तो मण अंदाजके खा जाती तब राजाने अनेक मंत्रवादियोंको बुलाया मगर वो मंत्र मंत्रवादीका विगर पढ़े राणी आप पढ़ देती, आखिर राजाने जिनदत्तसूरिः जीकी प्रशंसा सुनी तब राजा आप सन्मुख गया, और लोद्रवपुर मैं गुरूकों लाया गुरूकों देखते ही ब्रह्म राक्षस बोला, हे प्रभू आपके सन्मुख अब मैं लाचार हूं , कारण आपकी योग विद्याको मैं नहीं पहुंचता आपके सब देवता दास हैं, गुरूनें कहा, आज पीछे धीराके कुटुम्बको कभी सताया मत, तब ब्रह्म राक्षस बोला है गुरू इस राजाका मैं कथा व्यास था, एक दिन ऐसी हुई के इस राजाने देवीकी स्तुति करी,
और मैंने विष्णु सतो गुणी रामचन्द्रकी प्रशंसा करी, राजाने मानी नहीं, तब मैंने कहा है राजा मदिरा मांस चढाणा, जगदम्बा नाम धराणेवाली, अपने पुत्रवत् भैंसे बकरेको मारके भोग लगाणेवाली, जगतकी माता
१ धीराजी ओसवाल हो गये इस लिये भाटी राजाके कुर्शी नामेमें इनोंका नाम नहीं लिखा गया है। .......