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महाजनवंश मुक्तावली.
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उन्होंकी संगत करणे लगा, आज्ञा दी के, कोई धर्मवाला होय, उस पर बलात्कार, कोई अत्याचार हिमायतीवाला, नहीं कर सकेगा, सच्च है, ऐसे मंत्री और ऐसे गुरू महाराजकी शिक्षा जबसे अमल दरवलमें लाया बस इसही बातोसें अकब्बर बादशाहकी नेक नामी सदाके लिए हिन्दमें स्थिर हुई प्रजाके सुखकारी नियम जो जो गुरूनें बादशाहसें करवाये सो लिखें तो एक बड़ासा ग्रंथ बण जावे, इतना है, इस सब बातोंका मूल कारण बच्छावत . बोथरा करमचन्द था, इसवास्ते इन्होंका इतिहास विस्तारसें लिखा है, ये जमाना भस्म रासीग्रह भगवान वीरके, जन्मराशी पर, जो निर्वाण समय - आया था वह उतरनेका था, उक्त महाराजाने जैनधर्मका उदयपूजा सत्कार प्रगट करा, तबसें, दो फिरका साधुओंमें होगया एकतो सिद्धपुत्र क्षुल्लक जती धर्मोपदेशी पंडित, तथा श्रीजिन चन्द्र सूरिःके खरतर गच्छके सब पंचमहाव्रती जैनसाधु इसके बाद तपागच्छ नायक श्रीहीर विजय सूरिः दिल्ली पधारे तब भानुचंद्रजी सिद्ध चन्द्रजी यति प्रमुखने कलाकौशलतासे बादसाहको प्रशन्न करके ई कार्य उपगारके कराये, सूर्य सहस्रनाम कल्पनकर बादसाहको नित्य सुनाने आदि इसलिये केइफरमान भी लिखाये पांच पहाडोंके हिफाजतका फुरमाण हीर विजयसूरिः जीकों लिखवा दिया जिनचन्द्र सूरिःने तपागच्छी सिद्धिचंद्रयतीको बादसाह अकबरके पुत्र साहसलेमनें दुराचारके कारण कैदकर दियाथा तब आप बादसाहकों समझा कर कैदसे छुड़ाया, ऐसे उपगारी हुये, खरतर गच्छकी गुर्वाबलीमें समय सुन्दरजीने लिखा है, फिर विजय दानसूरिःके शिष्य धर्म सागरजीने स्वकल्पित ग्रंथमें खरतर गच्छपर केइ असत्य आक्षेप लिखे, तब जिन चंद्रसूरिः पाटण पधार उस समयके विद्यमान उपाध्याय वावकादि अन्य २ गच्छ वालोंको एकत्रित कर उहां रहे धर्म सागरजीको बुलाया लेकिन मृषावादी होनेसे सभा समक्ष नहीं आये केई दिन सभारही, आखर असत्यवादी समझ खरतर गच्छको विजयपत्र सर्व विद्वान् साधु मंडलीने लिखा, ताम्र.. पत्र पाटण वाडी पार्श्वनाथजीके मंदिर ज्ञानभण्डारमें रखा, ये सर्व वृत्तांत समाचारी शतकमें लिखा है, प्रथम चलाकर खरतरगच्छ वालोनें कभीभी