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महाजनवंश मुक्तावली.
विषवादरूप शब्द नहीं लिखा जब तपोनें आक्षेप करा तब उत्तर देना बाजबी समझ कर दिया, हीर विजय सूरिः भी, त्यागी, वैरागी, आत्मार्थी, जैनधर्मके उद्योत् कारी, प्रगट, हुए, उन्होंका ज्यादह, विहार, गुजरात, गोढ़वाडमें रहा, ये दोनों आचार्य चन्द्र सूर्यसम उदय, २ पूजा सत्कार के, कराणे वाले, प्रगट, हुए, इन्होंकाभी दो फिरका चलता रहा, आपसमें बड़ा संप रहा, खरतर तपोंके, बादशाहके माननीय होनेसें, जती लोकोंका चमत्कार देख २ के, सिद्ध पुत्र जतीयोंको, रांजालोक गाम जागीर मन्दिर उपासरेके हिफाजत करणे, शिष्योंको विद्या पढाणेको, देते गये, सो अभीभी विद्यमान है, वच्छावत कर्मचन्दने. वीकानेरमें सत्ताईश गवाड, गांम सारणि, धोत, लाहण, वगैरह जातीके कायदे बांधे, मुसल्मान समसेरखाने, जब सिरोही इलाका लूटा, उस लूंटमेंसें, १५०० जिन प्रतिमा सर्व धातुकी मिली, सो करमचन्दर्न वीकानेरमें चिन्तामणिजीके मन्दिरमें, धरवाई, सो अभी भी बड़े कष्ट उपद्रवादि दूर करणेको, बाहिर निकाली जाती हैं, पर्युषण पर्वमैं ८ दिन, कसाई, भड ने आदिकारुओंके, आरम्भ बन्द करके, लाग बांध दिया, सो अभीभी जाहिरी है, सोलेसय ३५ का काल पड़ा, उसमें करमचन्द बच्छा-- वतनें, कंगालोंको, तथा जैनी भाइयोंको, गरीब जाणके, साल भरका गुनरान दिया था, महात्मा लोगोंने, जिन चन्द्रसूरिः की, अवज्ञा करी थी, महाजनोंकी वंसावली पास रहणेसे, मस्त हो रहे थे, भवितब्यताके वस, ये काम बुरा हुआ, करमचन्दने सोचा, जब लोक बही बटोंको धन देते रहेंगे तो, जैन धर्मके आदि कारण जती साधुओंका, बहुमान लोक नहीं करेंगे, ऐसा विचार कर, धोखेबाजीसें, गृहस्थी महात्माओंकों, इकठे करके, वंशाक्लीकी बहिये माणक चौकके कूए में गिरादी, उन महात्मा गृहस्थियोंका, रकीना, औसर व्याहोंमें बागवाड़ी वगैरह का, बांध दिया, वह भी मजूरी करे तो, जो जो वंशावली, भण्डारोंमें, तथा श्री पूज्यजी महाराजके, पुस्तकालयमें, तथा दूरदेशी महात्माओंके पास रहगई, सो हानर है, परन्तु किसी वंश वालोंके नाम, ओस वालोंके महात्मा लोकोंके पास सें न मालूम, किस तरह पर, भाट लोकोंके पास दस ५ पीढीके