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महाजनवंश मुक्तावली.
जमाहुए, ठाकुरने श्रावक होना मंजूर करा, तत्काल क्षेतल कुमार सावधान होगया, क्षेत्रपाल निजरूपसे, गुरूके चरण पकड़ बोला, हे गुरू हे सर्व देवताओंके स्वामी, आपकी आज्ञा लोपेसो, इस भव परभव दुखी हो, आपके जब श्रावक यह लोक हुए तो, मेरी क्या, बल्के चारों निकाय के देवताओंकी मगदूर नहीं, सो इन्होंकी बुराई कर सके, ठाकुर सह कुटुम्ब जैनी महाजन हुआ, गुरूने गोत्रका नाम दोसी रखा, लोक डोसी कहने लगे, बाकी राजपूत श्रावक हुए, उन्होंकी शाखा सोनीगरा, बजणे लगी, इन्होंके प्रधान सोहन सिंहजीके पुत्र, पीथलजी श्रावक भए उन्होसे पीथलिया गोत्र प्रसिद्ध हुआ, पीथलनी पमारथे, मूल गच्छ खरतर । [ सांखलासूराणा गोत्र सियाल सांड सालेचा पूनम्यां]
विक्रम सं. ११७५ में, सिद्ध राज जयसिंह, सिद्धपुर पाटणका राजा, उसके पलंगका पहरेदार, जगदेव जिसकों राजा, एक वर्षका एक लक्ष सोनइया देता था, जगदेवजीके सात पुत्र थे, सूरजी, संखजी, सांवलजी, सामदेव, रामदेव, छारड़ इस तरह सुखसे पाटणमैं रहते थे, जगदेवजी बड़े शूरवीर थे अर्द्ध रात्री, काली चवदाशको, पहरा दे रहे थे, उस बक्त, बनमें, बड़ी धूम किलकिलाट अटट्टहस्सी, सुणके, सिद्धराजने जगदेवजीकों कहा, ये शब्द कहां हो रहा है निश्चय करके आवो, जगदेवजी, जो हुक्म कहकर, उहांसे निकले, आगे देखते हैं तो, कालिका वगैरह, बडे २ वेत्ताल, व ६४ जोगणियां, इकट्ठे होकर, नाचते और गाते हैं, जगदेवने पूछा, अरे तुम कौन हो, और क्यों फैलवानी करते हो, जोगणियां बोली, सिद्धराजनें हमारा बलिदान बकरे भैसें देणेका बन्द कर दिया, सो अब एक महिनेमैं मरेगा, जगदेवने पूछा कैसे मरेगा, जोगणियां बोली, इस देशमैं, महम्मद गजनवीकी सेन्या आवेगी उसमें लाखों मनुष्य मरेंगे, हमारे खप्पर रक्तसें, भरेंगे, उस युद्धमैं, हम जोगणियां, तथा क्षेत्रपाल बीर मिलके दुश्मनोंके हाथ, सिद्धराजको मरवाकर, बलिदान लेंगे, तब जगदेव बोला, किस प्रकार सिद्धराज बचे, जोगणियां बोली, ३२ लक्षणा पुरुषका जो, अगर बलिदान देतो, शत्रुओंकी फौज मैं, हम सहायता नहीं देंगे, तब जगदेव बोला, मेरा शिर