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महाजनवंश मुक्तावली. महा पुरुषकी, सहायता है, राजाकों सपरिवारसें, छोड़कर, बोला, हांसी हिंसार तुम खरचके वास्ते लेलो, और मेरे उमराव बनो, गोसलने कहा, देखा जायगा, सहरमैं आकर दीवान के घर आया, तब दीवाननें सव बात कही, और गुरूके पास ले गया, और धर्म सुणने लगा, गुरूसें राजा कहने लगा, किसी तरह पीछा राज्य मिल जाय, गुरूनें कहा जैनधर्म धारण करो, राना सपरिवार जैनी हुआ, रातकों समसेर खांको, क्षेत्रपालने, दरसाव दिया, यातो तुम राज्यपीछा गोसलकों दे दो, नहीं तो तुम्हारे हक्क मैं, अच्छा नहीं होगा, सुवहकों समसेरखाने, मारे डरके, राजाको पीछा राज्य दिया, और आप उहांसे अपनी फौज ले चल धरा, गुरूने, आघरह्या गोत्रका नाम धरा, उसको लोक आघरिया कहणे लगे, मूल गच्छ खरतर । .
[दूगड़ सेखाणी कोठारी गोत्र, तथा सुघड़], पाली नगर मैं खीची राजपूत, राजाका दीवान था, किसी दुश्मननें राजासे चुगली खाई, तब रानाके डरसे भगा, सो जंगलगढमैं जानेसे उसकी इग्यारमी पीढीमें, सूरदेव बडा शूर बीर पैदा हुआ, उसके दो पुत्र दूगड़
और सुघड, ये दोनों भाई मेवाड़मैं जाके आघाट गामके ठाकुर होगये, उस गांमके, चौतरफ भील में चोरी धाड़ा मारते, प्रजाकों दुख देते, उन्होंको दूगड़नें कैद किये, ये तारफि सुणकर, चित्तोड़के राणाने, इन दोनों भाईयोंको बुलाकर, कुरब बढाया, राव राजा की पदवी दी उस आघाट गांसके बाहिर, एक नारसिंह बीरका पुराणा मंडप था, उस गांसके लोकोंने, उस मकान को तोड़ाय डाला, तत्काल नारसिंह वीर, गांमके लोकोंको बडी, तकलीफ देणे लगा, पणिहारियोंके घडे फोड़ डाले, मनुष्योंके हाथसे खाने पीने की चीजें जमीनमें गिरवा देवे, इत्यादिक पत्थरोंकी बरसात रजो वृष्टि नानाप्रकार के उत्पात देखाणे लगा, इन रावराजाओंने, जंत्र मंत्र, बलि वाकुल बहुत करवाये, लेकिन उत्पात बन्द होवै नहीं, इस वक्त श्री दादा साहबके पट्ट प्रभाकर मणिधारी श्री जिन चन्द्र सूरिः उहां पधारे, सं. १२१७ मैं, इन्होंके सन्मुख, दोनों भाईयोंने विनय पूर्वक गांमके कष्टका स्वरूप कहा, तब गुरू बोले, जो तुम जैनी श्रावक हो जाओ तो, बन्दोबस्त