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महाजनवंश मुक्तावली.
रखता धीरेसे, जमीन पर सुला दिया, । राजा प्रजा जय २ शब्द करकै कहने लगे कि, सच्चा सांड तूं है; मेरी दी हुई पदवीको तेंने सफल कर बताई उस दिनसे सांड गोत्र हुआ। दूसरा बेटा, सांवलजीका सुक्खा हुआ, जिसके सुखाणी कहलाये; तीसरा सालदे, जिसके सालेचा कहलाये । चौथा पूनमदेव, जिसका पुनमिया, कहलाया, । इस तरह, जगदेवजीके तीनों बेटोंसे इतनी शाखा फैल कर, महाजन हुए। उस जमानेमें तीन आचार्य हेमसूरी नामके विद्यमान थे,मलधार हेमसूरिः पूर्ण तल्लगच्छी हेमचन्द्रसूरिः। तीसरे हेमसूरीके गच्छका पता नहीं है, मगर आत्मारामजी संवेगी लिखते हैं राजा कुमार पालकों, तीनोंने प्रतिबोध दिया था, तीनोंको राजा धर्मदाता गुरू मानता था । मलधार खरतरकी शाखा है, बाकी पूर्ण तल्ल गच्छ विच्छेद भया ।, इन सूराणोंकी माता सुसाणी ओर लोसल, कहाती है । पीछे अन्यमतका संवत् विक्रम सोलहसौ मैं इस वंशमें प्रचार हुआ । मूल गुरु मलधार गठ. इस वख्त सूराणे देवी मोर खाणेकी पूजते हैं।
आघरिया गोत्र। . सिंध देशमैं अग्ररोहा नगर का राजा' गोपाल सिंह भाटी राजपूत उसका परिवार पनरेसें घरका विक्रम सं. १२१४ मैं मुसल्मानोंकी फौजनें लड़ाई मैं राजाको कैद करलिया उस समय, खोडिया क्षेत्रपाल सेवित चरणकमल, श्री मणिधारी जिनचन्द्र सूरिःगुरू, अग्ररोहा नगर पधारे, उस समय उनका प्रधान घुरसामल, अग्रवाल प्रछन्नपणे मैं, आकर रातको गुरूमें विनती करी, हे गुरू, जो हमारा राजा कैदसें छूट जाय तो, आपका उपकार हम कभी नहीं भूलेंगे, गुरूनें कहा, जो राजा हमारा श्रावक बणे तो, हम उपाय कर सक्ते हैं, घुरसामलनें, कबूल किया, गुरूने कहा, तुम आजही देखो, क्या स्वरूप वणता है, अकम्मात् पनरेमें राजपूतोंकी बेड़ी, टूटपड़ी मुसलमीनोंको खबर हुई, फिर डाली फेर टूट गई, ऐसे सात बेर जब हुआ, तब मुसल्मीन समसेरखां, आश्चर्य मैंः आकर, पूछने लगा, ये गोसलसिंह क्या चमत्कार है, गोमल भाटी बोला, में नहीं जाणता, ये क्या बात है, समसेरखां, मनमें सोचने लगा, इस राजाके पीछै, किसी