________________
महाजनवंश मुक्तावली.
५९. -
वस १४ प्रधान नामी पुरुषोंके संग वीकाजी योध पुरसे रवाना हुए १५४१ में राजतिलक राती घाटी पर विराजकर किल्ला डाला - १९४५ में बीकानेर बसाया, मंत्री वछराजने, अपने नामसें, वछासर, गांम वसाया, बछराजने, सत्रुजय गिरनार तीर्थोंकी यात्रा करी, इनके करमसी, वरसिंह रत्ता, और नरसिंह तीन पुत्र हुए, देवराजके दस्सू , तेजा, भूणा, तीन पुत्र हुए, वछराज जीसें, बछावत कहलाये दस्सूजीके, दस्साणी इसतरह पुत्रोंके नामसे बोथरा गोत्रकी कई शाखा निकली, वीकाजीके पुत्रराव लूण करणजीने करमसी को मंत्री वणाया, मुंहते करमसीने, करमसी' सरगांम बसाया, बहुत श्री संघको इकट्ठा करके, खरतर गच्छाचार्य श्री जिनहंस सूरिःका पाट महोत्सव करा, सं.। १५७० में बीकानेरमें नेमनाथ स्वामीका सिखरवद्ध मन्दिर करवाया, जो भांडासाह के मन्दिरके पासं विद्यमान है। सत्रुनयका संघ निकाला, एक एक मोहर, एक एक थाल, पांचसेरका लड्डू वर २ प्रति, गांम २ में साधर्मियोंको देता, बीकानेर आया, रावलूण करणनीके पाट, राव जैतसी जी, उन्होंने करमसीके, छोटे भाई वरसिंह को, अपना मंत्री बनाया, वह नारनोलके, लोदी हानी खानके साथ, युद्ध कर, काम आया, वरसिंहके, मेघराज, नागराज, अमरसी, भोजराज, इंगर सी ( डूंगराणी) कहलाये, और हरिराज, ऐसे छह पुत्र हुए, मंत्री नागराज को, चंपा नेरके बादशाह मुंदफरकी नोकरीमें रहणा पड़ा, उसनें बादशाहके हुक्मसें, संघ निकाला, तीर्थोपर, गुनरातियोंकी गड़बड़ देख, भण्डारकी कूची, कबने करी, रस्तेमें, एक रुपया, एक थाल पांचसेरका लड्डू , साधर्मियोंकों देता, बीकानेर आया, १५८२ में बड़ा काल पड़ा, तब तीन लाख रुपयोंका, अनाज, कंगालोंको, बांटा, एकदिन मोहता नागरामके, सिंधदेश देराउर नगरमें, दादा श्री जिनकुशलसूरिःजीके दर्शनकी, अभिलाषा हुई, संघ निकालणा विचारा, फिर चिन्ता हुई के, सिंधके रस्तेमें, जल मि
- १ काका कंधलजी २ रूपाजी ३ मांडणजी ४ मंडलाजी ५ नाथूजी ६ भाई जोगायत्तजी ७ बीदाजी ८ सांखला नापाजी ९ पडिहार बेलाजी १० वैदलाला लाखणसी ११ कोठारी महाजन चौथमल १२ वछावत वरसिंह १३-प्रोहित विक्रम १४ माहेश्वरी राठीसाहसालाजी.