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महाजनवंश मुक्तावली . ४५ नेका व्यापार करने लगे, पेट गुजरान भी मुशकिलसें हुआ करे, एक दिन नेमचन्द्रसूरिः आचार्य, वल्लभी नगरमैं पधारे, उससमय ये दोनों भाई, नित्य व्याख्यान सुननेकों, जाने लगे, गुरूसें पूछणे लगे, हे स्वामी, हमभी कभी सुखी होंगे, गुरूनें कहा, जो तुम जिनधर्म सम्यक्त्व गृहण करो तो, सब बताता हूं उन्होंने ग्रहण करा, गुरूनें कहा, तुम्हारा भाग्य वल्लभी मैं राज्यसें खुलेगा, बहुत धनवान हो जाओगे, बृद्ध अवस्थामैं, तुमकों राजा धन छीनके निकाल देगा, आखिर यवनोंकी फौज लाकर तुम बल्लभी नगरीका विद्धंश कराओगे, और तुम्हारी शन्तान पारकर देशमैं पांचमी पीढी, विस्तार पावेगी, ये दोनों भाई नेमचन्द्रसूरिः सें, सम्यक्त्वी भये, सगपण राजपूतोंमें था, आखिर ये राजाके मानवंत हुए, वल्लभीका नाशभी इन्होंसे ही हुआ, तदपीछ. ये वल्लभी छोड़ पारकर देश, पाली नग्रपास गांम मैं आ बसे, फिर इन्होंकी शन्तान, खेती कर्म करणे लगी आखरको पांचमी पीढी मैं इन्होंके, रांका, और बांका नामके दो लड़के, उत्पन्न हुए वे खेती करते थे, इधर श्री नेमिचन्द्र सूरिःके छठे पाटधारी, श्री जिनवल्लभ सूरिः, विहार करते, उस रस्ते चले आये, इन दोनोंने, वन्दना कर, आहार पाणी बहराया, गुरू बोले तुमकों एक महिनेके अन्दर, सांपका डर होगा, इस लिए तुम महापाप कारी ये कृषाण कर्मका, त्याग करो, ऐसा कह गुरू विहार करगये, ये दोनों, इस बातकी परिक्षा करणेको, करी भई खेतकी रक्षा करते रहे एक दिन सांझको, खेतसे पीछे आते थे, रस्तेमें, सांप पडा था, पूंछ पर पांवटिका, सांपने कुंकार किया, तब ये भगे, उस सांपने इन्होंका पीछा किया,. तब ये दोनों एक तलाबमैं, कूदप., तिरके पार निकले, दिलमैं डरते २ एक चामुण्डा देवीके मन्दिरमैं घुसकर, दरवज्जा बन्धकर सोगये, प्रभात समय, सांपको देखणे, मन्दिरकी छतपर चढे, देखते हैं सांप मन्दिरके आसपास घूम रहा है, तब इन्होंने, मरणान्त कष्ट जाण, गुरूका वचन याद करा, तब चामुण्डा देवीकी स्तुति करणे लगे, तब देवी मूर्तिके मुख बोली, अरे मूों, जो तुम उसी दिन खेती करणेका त्याग करदेते तो, तुमको, ये डर नहीं होता, गुरूका वचन नहीं माना, जिसकी ये, तुम्हें सजा मिली है, ये श्रीजिनवल्लभसूरिः युग