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महाजनवंश मुक्तावली
सब लोक, सन्मुख आकर, वाजे गाजे बड़ी धूमसें, नगर मैं लाये, क्योंकि यहां गुरू महाराजनें, दीवानके लड़केकों, सांप काटे मृतक तुल्यको जिलाया था, इस लिए राजा प्रजा सब गुरू महाराजके, सेवक थे, उस वक्त ये महिमा वो गुजराती अम्बड़ देख कर, गच्छके द्वेष, ईर्ष्या अग्निसें दग्ध होगया, तब गुरूकों कहने लगा, आपका चमत्कार और त्याग वैराग्य जब मैं सफल जानूँगा, इस तरहके उच्छवसें, जो आप अणहिल पाटण मैं पधारे तो, तत्र गुरूनें उसके वचनसें इर्ष्या जाणके, जबाब दिया, हम पट्टण मैं इस तरहके उच्छवसें आवेंगे, उस वखत, तूं कर्मगति से निर्धन होकर, तेल लूंण वेचता, हमारे सन्मुख आवेगा, पीछे, कई अरसेके गुरू उहां पधारे उस समय पाटण मैं, श्रीजिन दत्तसूरिः के, तीनसय श्रावग वसतें थे, बड़ी धूम धाम उच्छवसे सामेला हुआ, अकस्मात् दलिद्र रूप, चींधड़, तेललूंण वेचणे, गामों मैं, जाता था, धन सत्र जाता रहा, ऐसा अम्बड़ सामने मिला, गुरूनैं, पहिचान कर कहा, हे अम्बड़, मुलतान मिले थे, पहिचानते हो, लज्जित होके, गुरूके चरणो मैं गिरा और मन मैं द्वेष लाया के, इन्होंके कहने से मैं निर्धन हो गया, मतना इन्होंकी महिमा, यहां बढ़े, तब कपटसें जिन दत्त सूरिः का, श्रावक वणगया, गुरूका धर्म व्याख्यान सुणा करे, एक वक्त गुरू महाराजके, तेलेका पारणा था, इसनें भक्तिसें, साधुओंको, बहरनें बुलाये, तब मिश्रीका जल जहर मिला हुआ, बहिरा कर बोला, ये जल गुरू महाराजके योग्य, निर्दोष है, मैनें पारणेके वास्ते मेरे बणाया था, साधुओंनें गुरू महाराजकों दिया, गुरूने पारणे मैं पी लिया, पीछे मालूम हुआ के, इसमें विष है उसवक्त भणसाली श्रावक आभूसाखवाला, पच्चखाण करणे आया त गुरूनें कहा मुझें जहर होगया ह इतना सुनतेही वो श्रावक अपनी ऊंटनी ( सांड ) बहुत शीघ्र गामनी पर सवार होकर भूखाप्यासा निकला विषापहारिणी मुद्रिका लेकर पीछा आया, आचार्य महाराजके वमन पर वमन और बेहोसी, वदन काला, और हाथोंमें ऐंठण, चलणे लग रहा है, हजारों
मनुष्य इकठ्ठे हुए, १ पहर मैं पीछा आकर, उसको प्रासुकजल मैं, डाल कर, साधुओंने दिया, तत्काल, सर्व उपद्रव, शान्त हो गये, ये बात फैलते ?