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- महाजनवंश मुक्तावली राजाके पास पहुंची, तत्काल, अम्बड़कों बुलवाकर राजानें, कबूल करवा लिया, राजाने प्राण लेणे की सना मैं, चौरंगा करणेका हुक्म दिया, तब जिन दत्तसूरिःने साधुओंकों, राजसभा मैं भेजकर, ये हुक्म बन्द करवाया, राजाने देसोटा दिया, जहां २ जावै, उहां हत्यारा कहके कोई इसकों बतलावें नहीं आखिर गुरू पर द्वेष भाव रखना २ अधम मरके व्यन्तर हुआ, अब बैरानसंबंधसें, गुरूका छल देखने लगा, अकस्मात् गुरूका, ओघा आसणसें दूर हटा, तत्काल यो व्यन्तर लेके, उत्पात करता- गुरूकों उन्मत्त बणा दिया, गुरू अपने होस मैं होय तो, अन्य देव भी याद करते ही हाजिर होय, उस वक्त वीर और जोगणियां सब उत्तर दिशा मैं कोई व्यन्तरोंके परस्पर युद्ध होता था उहां चले गये थे, भवितव्यता जब आती है तब सुसम चक्रवर्ती तथा भगवान बीरके अनेक देव सेवा करते भी कई मरणान्त कष्ट भोगणा पड़ा था और उसवक्त उस दुष्ट व्यन्तरनें पूरा छल पाया तभी ये कार्य किया उस समय सब खरतर संघनें बलिदान मंत्रादिक किया, तब व्यन्तर प्रत्यक्ष हो बोला, जो उस समय जहरका प्रतिकार करनेवाला भणसाली अपने:सब गोत्रको, मेरे बलि करे तो, मैं ओघा देके, श्री जिन दत्तसूरिःकों, निज सत्तामें, कर देता हूं, इतना सुणते ही भणसाली मुरुभक्तिसे गोत्रका, उतारा कराया, न्यन्तरने ओघादेके - - जिन दत्तसूरिःकों, छोड़ दिया, भणसालीके सब कुटुम्बको, मारणे निमित्त, जो व्यन्तर उद्यत होता था, तत्काल श्री जिन दत्तसूरिने, उस व्यन्तरकों योग विद्यासें, स्थम्भन कर दिया, सब भणसालीके बच्चोंपर ओघा फेरते ही, सब सावधान हो गये, ऐसा अचरज देख, राजाप्रमानें, धन्य २ भणसाली तुह्मारी . गुरूभक्ति, जो तुमनें, सारा कुटुम्ब, गुरूके निमित्त, अर्पण करा तुम खर ( करड़ा ) हो, तबसे सोलंखी भणसाली खरा भणसाली कहलाये, इन्होंका परिवार बड़ी मारवाड़ गुजरात में बसता है राय भणसालीसें चंडालिया नख प्रगट हुआ, कछबा हुआ, भूरेजीकी शन्तान भणसाली, भूरा कहलाये, कई पूगलसें उठे वह भणसाली पूगलिया कहलाते हैं, मूल गच्छ इन्होंका .. खरतर है।