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महाजनवंश मुक्तावली.
पना निरुद्यम पनसें भी, भोजन छादन प्राप्त होने लगा, विक्रम सम्बत् ११७५ मैं श्रीजिन दत्त सूरिंनें पद्मावती नगरको चरण रजसे, पावन करा, समंदसी धन्ना पोर बालके संग, गुरूकी वन्दना करने गया, गुरूनें धर्मोपदेश दिया, तदन्तर समंदसीनें गुरूसें विनती करी, है पूज्य, गुरू दत्त मैं व्रतसे इस भव मैं सुखी हुआ हूं, पर भव अवश्य सुखा कर होगा, ये आठ पुत्र आपके हैं, गुरूनें वासचूर्ण क्षेपन करा खरतर श्रावक बनाये, धर्मका रहस्य समझाया, तदन्तरधन्ना पोरवालनें, इन्होंकों, भागीदार बनाके, गुजरात मैं व्यापार कराया, समुद्रके मार्ग गमन कर, मोक्तिक, विद्रुम, अम्बर, आदि व्यापारसें, आठो भ्रातानें, कोटान मुद्रा अर्जन करी, गुरू श्रीजिन दत्त सूरिःकी कृपासें; ओसवाल ज्ञातिमैं, मिले, संमदसीके शन्तान, समुद्र के व्यापारी होनेसे, लोक समंदरिया बोहरा कहने लगे, मूल गच्छ खरतर, ( झांवक झांमड झंबक )
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राठोड़ वंशी रावचूंडेजीके वेटे पोते १४ जिन्होंने १४ राज्य अलग २ स्थापन करा जिसमें से मालव देशमैं रत्न ललाम ( रतलाम ) नके आसपास २१ । ३० कोशके दूरीपर जो अब झबूआ नगर वसता है इस नगरी राजा बदेके ४ पुत्र सुखसें राज्य करते थे. सम्बत् १९७५ मैं श्रीजिनभद्र सूरिः खरतर गच्छी विचरते २ उहां पधारे तब राजाने बडे महोत्सवसें नगर मैं पराये क्यों के रावसीहाजी आसथानजीने श्रीजिनदत्त सूरि : जीकी सेवा करी तब गुरू बोले हे राजेन्द्र क्या इच्छा है आसथानजी अरज करने लगे गुरू राज्य भ्रष्ट हो गया सो किसी तरह राज्य मिले ऐसी कृपा करो तब गुरूनें कहा जो तुम्हारी शन्तान मेरे शन्तानोंको सदाके लिए गुरू मानते रहैं तो मैं आगे होनेवाली बातका निमित्त भाषण करता हूं आसथानजी बोल जहांतक पृथ्वी और धू अचल रहैगा उहांतक हम राठौडोंके गुरू खरतर गच्छ रहेंगे और कभी विमुख नहीं होंगे ये उपकार कभी नहीं भूलेंगे सूर्यकी साक्षी परमेश्वर साक्षी है इत्यादि अनेक वचन प्रतिज्ञा अन्तःकरणसें करी तब गुरूनें शासन देवीकी आराधना करी और कहा तुम्हारे कुल मैं चंडा नाम पुत्र होगा उसके १४: