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प्रस्तावना.
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समय इसका मामा विमानमें वैठा उधरसें निकला उस बालकके पुण्यसे उसका विमान अटका, तब वह तापसोके आश्रम में उतरा और नमन कर विमान खलनका स्वरूप कहा, तब तापसोंने जाति नाम वा स्थान पूछा उसनें कहा, तब भूमि गृहमें बैठी सुभूमकी माता अपने भ्राताको जाण बाहिर आरुदन करती भ्रातासे संपूर्ण वृत्तांत निवेदन करा तदनंतर तापसोंकी आज्ञासें भगनी और भागनेयको विमानारूढकर वैताढ्य ( तिव्वत ) स्वराजधानी में ले गया एक सहस्र आठशुभचिन्ह अलंकृत भागनेयको देख निमित्तज्ञानी [ जोतषी ]
से पूछा इस बालकके भावी फल कहो । तब निमित्तज्ञनें कहा, ये चक्रवर्ति साम्राट् भूचरोंमें होगा और परशुरामका हंता यही बालक है, नैमित्तकको द्रव्य सत्कार कर विसर्जन करा अस्त्र शस्त्रकला आदि लीलामात्र से वह सुभूम अल्पकाल मैं ७२ कलामें निपुण हुआ इधर परशुरामनें एकदा निमित्तज्ञसे पूछा मेरी आयु कितनी अवशेष है, तदा निमित्तज्ञनें शास्त्रानुसार कहा हे राम जिनक्षत्री राजाओंको मार २ दाढायें उनोंकी एकत्रित करी है, उन दाढाओंकी जिसकी दृष्टि मात्र क्षीर हो जावे, उस क्षीरका वह भोजन करने लगे, वह तेरा हंता जाणना, तब परशुराम शत्रुको पहचाननें नगरके बाहिर एक महादानशाला बनवाई जिसमें स्वदेशी विदेशी अतिथि तथा पंथी जनोंकों अन्न जलादि मिले उहां एक शालामें, स्वर्णरत्नमई महान् सिंहासन स्थापित कर उसपर स्वर्णस्थाल क्षत्रियोंकी दाढा भरकर स्थापन कर पांचसय वीरोंकों तद् रक्षार्थ ससस्त्रनियत करे और गुप्तरहस्य कहा, इधर एकदा सुभूमनें मातुलके समक्ष मातासे पूछा हे अंब मेरा पिता कहां है और अपना निजस्थान कहां है तब माता रुदन करती संपूर्ण वृत्तांत कहा उससमय माताको सुभूमनें कहा तू निश्चिंत रह में परशुरामको मेरे पिता शमीप प्राप्त करूंगा राज्य लेलूंगा ऐसी प्रतिज्ञा कर मातुलकों संगले सीधा हस्तिनागपुर आया दानशाला में विश्रामार्थ प्रवेश करा इसकी दृष्टिपात से दाढाओं स्वर्ण स्थालस्थ क्षीर हो गई मातुलकों कहा में क्षुधातुरहूं क्षीर भक्षणकर्ताहूं और भक्षण करने लगा त्योंही सुभट धाये उनोंकों मातुलनें छिन्नभिन्न कर डाले, ये खबर पाते ही परशु लिया हुआ परशुराम सुभूमके वधार्थ आया तदा उस स्वर्ण स्थालकों, अंगुलीपर घुमाके फैंका वह उससमय चक्ररूप हो परशुरामका शिर पृथ्वीपर गिराया, आकाशमैं देव दुंदुभिका शब्द और देवतोनें जयजय चक्रीश चिरंजीव इत्यादि शब्दकर सुभूमपर पुष्पवृष्टि करी तदनंतर सुभूम षट्खंडके ३२ सहस्र मुकुट वद्धराजाओंको वसकरा, १४ रत्न, १६ सहस्र यक्षसेवक, नवनिधान, ८४ लक्ष हस्ती ८४ लक्ष अश्व, ८४ लक्ष रथ, छिन्नूं कोटी सुभट, प्राप्तकर, पिता, और क्षत्रियोंका, बैर लेने २१ बेर निब्राह्मणी पृथ्वी करी, उस भयसे, ब्राह्मण केई तो शस्त्र