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॥ श्रीसद्गुरुभ्यो नमः ॥ ॥ जैनराजपूत महाजन ओसवाल
वंशोत्पत्ति प्रारम्भ ॥
वंदोंश्री महाबीर जिन, गणधर गौतमस्वाम, मात । नमूं नित सारदा, पूरण बंछित काम ॥ १ ॥ ओसवालवड भूपती, शूर बीर मच्छराल ॥ राजकुमर दाता गुणी, शरणागत प्रतिपाल ॥२॥ अश्वपती महाजन बिसद, जिनधर्मी रजपूत ॥ दया धर्म श्रद्धा धरी, अदल करे करतूत ॥ ३ ॥ देव एक अरिहंत जिन, गुरू जती अभिराम ॥ द्रव्य भाव पूजा करे, अहनिशधर्मी धाम ॥ ४ ॥ ख्यात लिखे इस वंश की, वडज्यूं पसरो साख ॥ .
रहोसदा चढ़ती कला, धनसुत कीरति लाख ॥५॥ - श्री चोबीसही तीर्थकरोंके शासनमैं उग्रकुल १ भोगकुल २ राजन्यकुल ३ और क्षत्रीकुल ४ इन चारोंवर्गोंवाले जो जैनधर्म पालते थे बो सब गृहस्थ श्रावक नामसे कहलाते थे, इतिहास तिमिर नाशकके ३ प्रकाशमैं राजा शिवप्रशाद सतारे हिन्द लिखता है स्वामी शङ्कराचार्यके पहले इस आर्यावर्त्तमै २० करोड़ मनुष्योंकी वस्ती सब जैन (बौद्ध) थे, बेदके. माननेवाले काशी कन्नोज कुरुक्षेत्र काश्मीर इन चार क्षेत्रमैं बहोत कम संख्या प्राय अस्तवत् रह गये थे, जैनोंकों बौद्ध इसवास्ते लिखा है कि
और विलायतों वाले जैनोंसे वाकिफकार नहीं है कारण जैनियोंकी वस्ती मध्य खण्ड मैं कई लाखोंकी संख्या मात्र रह गई है, चीन जापानके जो मांसाहारी तांत्रिक, रातके खानेकाले बौद्ध हैं, उनसें आर्यावर्त्तके जैन(बौधों ) में कोई संबन्ध नहीं है, मतलब अब जो जैनमतके विरोधी