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प्रस्तावना.
१८ पाप होय यदि ऐसा यह उपदेश राजा प्रजा सर्व मंतव्य करके एकको एक बचावे नहीं तब तो, प्रलयकाल, जैनियोंका छट्टा आरा इस समय हो जावे वा नहीं, यह उपदेश न्याय मार्गका प्रत्यक्ष नाश कर्ता है क्योंके जब पोलिस आदि राज्य वर्ग तथा प्रजावर्ग एकको एक नहीं बचावे तब तो जगतमें वैरानुभावसें बलवान अवश्य निबलकों प्राण रहित कर देगा, उससें बलवान् उस्कों प्राणरहित कर देगा सिंह श्वापदादि जंतु गण मनुष्योंका संहार कर देगा, इत्यादि स्वरूप बणनेसैं, जगत् मैं हाहाकार मचेगा, इस लिये बुद्धिवान विचार तो करे, इस उपदेशके कर्ता केसे न्यायवंत हैं, और जीव जंतु गणके केसे हित सुख बंछक है राज्य धर्म विरुद्ध, ये उपदेशक सिद्ध होते हैं.
अन्य दर्शनी ६८ तीर्थ कहते हैं जैन धर्मकी तीर्थावली इस मुजब है . सोरठ देशमैं तीर्थाधिराज शत्रु जय तीर्थ १ गिरनार नेम प्रभुके चार कल्याणक तीर्थ २ आबू तीर्थ ३ नाडोल तीर्थ नाडोलाई तीर्थ ४ वरकाणा तीर्थ ५राणपुरा तीर्थ ६ मंछाला महावीर तीर्थ ७ ओसियां तीर्थ ८ संखेश्वरा तीर्थ ९ तारंगा तीर्थ १० भोयणी तीर्थ ११ अंतरीक तीर्थ १२ मगसी तीर्थ १३ फलोधी पार्श्व तीर्थ १४ लोद्रवाजेसल मेरु तीर्थ १५ दक्षण हेदराबाद राजस्थ कुलपाक तीर्थ १६ अमी झरा तीर्थ १७ जीरावला तीर्थ १८ साचोर तीर्थ १९ भरु अछ तीर्थ २० खंभात स्थंभन तीर्थ २१ पंचासरा तीर्थ २२ गोगानवखंडा पार्श्व तीर्थ २३ पाटण तीर्थ २४ तिव्वत राजधानी अष्टापद [ केलास] तीर्थ वरफसे ढक गया अलोप २५ बीकानेर भांडा सरादि तीर्थ २६ हस्तिनागपुर तीर्थ दिल्ली शमीप २७ कासी तीर्थ २८ भेलू पुर तीर्थ २९ भदाणी तीर्थ ३० सिंह पुरी तीर्थ ३१ चंद्रावती तीर्थ ३२ ये सब कासी शमीप है प्रयाग ऋषभ ज्ञानतीर्थ ३३, अयोध्या ऋषभ जन्मकी, सामकी राजधानीमैं है, लेकिन अन्यतीर्थ करके कल्याणक इस अयोध्यामें हुये इस लिये अयोध्यातीर्थ ३४ नवराई तीर्थ ३५ चंपापुरी तीर्थ ३६ पावापुरी तीर्थ ३७ क्षत्रिय कुंड (कुंडलपुर ) तीर्थ ३८ गुणशिला तीर्थ ३९ राजगृहीमैं ५ पंचपहाड तीर्थ ४४ बराकडनदी [ ऋजुवालिका] वीरज्ञानतीर्थ ४५ शिखर गिरिराजतीर्थ ४६ मिथलातीर्थ ४६ कपिलपुरतीर्थ ४७ मथुरातीर्थ ४८ जहां २ तीर्थपतिका जन्म १ दीक्षा २ केवल ज्ञान ३ निर्वाण ४ हुआ वे सर्वस्थल तीर्थरूप है, अधुना संवत् ६०० विक्रमकावणा भांदक (भद्रावतीतीर्थ ) दक्षणमैं चंद्रपुर ही गणघाटशमीप है,
४९, काकंदी तीर्थ ५० जहां २ जिनमंदिर मुसलमानोंने, नष्टकर दिये, उस • स्थानके तीर्थ अलोप हुये, केई जैन तीर्थोंको शिववैष्णवमतियोनें, बलात्कार स्वतंत्र कर लिये, उनोंके नाम नहीं लिखे,