________________
प्रस्तावना.
२९
.. केई कहते हैं, तीर्थतो, साधु १ साधवी २ श्रावक ३ श्राविका ४ इन चारों सिवाय सूत्रोंमें, तीर्थ नाम चलाही नहीं, [उत्तर ] जंबू द्वीपपन्नत्ती सूत्रमें तीर्थ करोंके जन्माभिषेकके शमय ६४ इंद्र एकत्रित हो अपने २ आज्ञाकारी देवतोंकों आज्ञा दी है, हे देवो तुम गंगा सिंधू पद्मद्रहादि तीर्थोंका तीर्थजल अभिषेकार्थ लाओ तब बे देवता लाये हैं यदि स्थावर नदी तीर्थ नहीं होती तो समकितवंत इंद्र तीर्थजल कैसे लानेका कहते पुनः भरतचक्रीका दिगविजय षट्खंडका इस ही सूत्रमें लेख है उसमें मागध १ बरदाम २ प्रभास ३ एवं ३ तीर्थोंको भरतादि चक्रवर्ति साधते हैं इन स्थावर स्थानोंको तीर्थ सूत्रोंमें लिखा है वा नहीं जो प्राणी एकांत पक्ष स्थापन कर्ता है उसपर एकांतनय वादक मिथ्यात्वका अवश्य वज्रपात होता है सर्वज्ञ जैनधर्म स्याद्वादी है इस लिये एकांतनय नहीं दयादान पूजा, विषय, और कषाय शुद्धभाव विगर एक क्षेत्र है, ऐसा समयसारमें लिखा है, ___ तीर्थकर्ता होनेसे तीर्थकर कहाते हैं, ऊपर लिखे स्थावर तीर्थ भी उन तीर्थ पतीकी स्थापनासै हैं, जीव जिसद्वारा तिरे, वह तीर्थ कहाता है, किंबहुना जाति भास्कर वेंकटेश्वर प्रेसमें छपा सो लिखता है, वैश्योंका कृत्य खेती, व्यापार, गऊ - आदि पशुवृत्ति, और व्याज, जौनयोंके उपदेशसै क्षेती गऊआदि पशुवृत्ति वैश्योंने त्याग दी, लेकिन क्षेती करना अवश्य था इत्यादि (उत्तर) सर्वज्ञ जैनाचार्य उपदेशारा लाभालाभ संपूर्णकृत्योंका दर्शाते हैं, उसमें जिसकों जो रुचे वह ब्रत वह अंगीकार करता है, माहेश्वरी, ओसवालादि तो क्षत्रिय वर्ण थे व्यापारमें विशेष द्रव्यलाभ देखा, जीवहिंसा अल्प, इस लिये, स्वीकारी होगी क्योंकि नीतिका वाक्य है, यत: वाणिज्ये वर्द्धते लक्ष्मी, किंचित् २ कर्षणे, अस्तिनास्तिच सेवायां. भिक्षानैवच नैवच १ अर्थ, वाणिज्यसे लक्ष्मी वृद्धिपाती है, व्यापारद्वारा अमेरिकन जर्मन जापानादि अडवोंपति हो गये, व्यापार द्वारा अंग्रेजसरकार वादसाह साम्राट हो गये व्यापारसें पारसी मुसलमान बोहरे आदि महाश्रीमंत हो गये, अग्रवाल, महेश्वरी ओसवाल पोरवालादिक हजारो लक्षाधीस सइकडों कोट्याधीस विद्यमान है व्यापार केवदोलत अहिंसा धर्म पालनेसैं मनुष्योंमें श्रेष्ठ पदसे अलंकृत है, अग्रवालादि महाजनोंकी सेवा इस व्यापारमें चारोंवर्ण कर रही है, प्रथमसाह, बादसाह, इहां तक, उच्च श्रेणीमें व्यापार द्वारा प्राप्त हैं, [ किंचित् किंचित् कर्षणे ] अर्थात् कृषाणकर्मक्षेतीमैं कुछ २ द्रव्यप्राप्ति होय कभी वृष्टि अभाव होय तब धान्योत्पत्ति होय नहीं, तब ऋण लेना पडे व्याज देना पडे वर्षा में उत्पन्न धान्य ऋणमें चलाजावे, शुक [चिडिया सूए आदिपक्षी ] सलभ [ टीडी ] चए शूकर प्रमुख जीव धान्य भक्षण कर जावै, इस लिये द्रव्यलाभ विशेषतासें किसी भी समय होवै नहीं, और हल चलाते पृथ्वी फाडते.