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लेखकीय
उपाध्याय विनयविजय जी ने लोक के चार प्रकार द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक और . भावलोक का 'लोकप्रकाश' में विशद् एवं व्यापक विवेचन किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रथम अध्याय में उपाध्याय विनयविजय के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का विशद परिचय दिया गया है। उपाध्याय विनयविजय का जन्म विक्रम संवत् १६६१ में गुजरात की धरा पर हुआ। उनके साक्षात् गुरु उपाध्याय कीर्तिविजय थे तथा सतरहवीं शती के महान् जैन दार्शनिक उपाध्याय यशोविजयगणी उनके समकालीन थे। प्रथम अध्याय में ही उपाध्याय विनयविजय की गुरु परम्परा में सम्राट् अकबर के प्रतिबोधक आचार्य हीरविजयसूरि, श्रीविजयसेनसूरि, श्री विजयदेवसूरि, श्री विजयसिंहसूरि, श्री विजयप्रभसूरि, श्री कीर्तिविजयगणी का समुचित उल्लेख किया गया है।
उपाध्याय विनयविजय उत्कृष्ट कवि, महान् वैयाकरण, दार्शनिक, आगमवेत्ता, आगमेतर ग्रन्थों के गहन अध्येता, टीकाकार, भूगोल-खगोल एवं गणित के ज्ञाता तथा जैन दर्शन के कुशल प्रस्तोता थे। चारित्रिक दृष्टि से उनमें विनयशीलता, कृतज्ञता, सरलता, अध्यवसायशीलता आदि अनेक गुण विद्यमान थे। उपाध्याय विनयविजय का साहित्यिक कृतित्व वैविध्यपूर्ण है। उनके द्वारा रचित ४० कृतियों के साहित्य को हमने नौ विभागों में रखकर परिचय दिया है। ये नौ विभाग इस प्रकार हैं
१. आगम व्याख्या एवं सज्झाय साहित्य २. इतिहास विषयक साहित्य ३. आध्यात्मिक रचनाएँ ४. स्तोत्र एवं स्तवन ५. व्याकरण विषयक रचनाएँ ६. रास एवं फागु काव्य ७. पूजा पद्धति-विषयक साहित्य ८. दूत काव्य, गीति काव्य एवं विज्ञप्ति लेख ६. दार्शनिक साहित्य