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है, वह उक्त तीन तरह की हिंला में अन्तर्गत है या नहीं ? खेती में होने वाली हिंसा उक्त ख और ग विभाग के अन्त - र्गत है। खेती करने वाले का उद्देश्य हिंसा करना नहीं, वरन् खेती करना होता है । इसका प्रमाण यह है कि खेती करने वाले श्रावक को अगर एक हजार रुपये का प्रलोभन देकर कहा जाय कि - हजार रुपये ले लो और इस मकोड़े को मार डालो, तो वह ऐसा करने को तैयार न होगा । जो किसान श्रावक खेती करने में अनगिनती जीवों की हिंसा करके सौ-दौ सौ रुपयों का धान्य पाता है, वह हजार रुपये लेकर भी एक मकोड़े को मारने के लिए तैयार नहीं होता । इसका कारण यह है कि मकोड़े को मारना संकल्पी हिंसा है और खेती की हिंसा आरंभी हिंसा है । असंख्य जीवों की प्रारंभी हिंसा होने पर भी श्रावक का अहिंसाव्रत भंग नहीं होता, जब कि एक मकोड़े की संकल्पी हिंसा से भी व्रत का भंग हो जाता है | आरंभी हिंसा और संकल्पी हिंसा की तुलना करते हुए श्री श्राशाधरजी सागारधर्मामृत नामक श्रावकाचार में कहते हैं
प्रारम्भेऽपि सदा हिसां सुधीः साङ्कल्पिकी व्यजेत् । नसोऽपि कर्पकादुच्चैः पापो ऽनन्नपि धीवरः ।
सागार० हि. घ.
अर्थात् - समझदार श्रावक आरंभ करने में भी संकल्पी हिंसा का त्याग करे, क्योंकि संकल्पी हिंसा अतिशय पापमय
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