Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 78
________________ . [७० ] अशक्य छे. अवीज रीते, खेतीमां-हिंसा थाय ठे-जीवो मरे हे अवात साची पण जैनधर्म खेतीनी मनाई करी नथी. उलटुं यतनाथी, सावधानीथी, खेती करवी अवो उपदेश प्रापेलो के कारण के खेतीथी नीपजतुं अन्न पाणी जेटलज जीवनधारण ने माटे यावश्यक छ. जैनशास्त्रोमां कह्युं छे के मनुष्यजन्म दुर्लभ छे, माटे प्रमाद न करो. मोन माटे मनुष्य देहज साधन छे. माटे मनुप्य देहने टकावीने श्रेयप्राप्तिने मार्ग जq ) दरेक श्रेयाथिर्नु ध्येय होवू जोइये. मनुष्य देहने टकाववा माटे अन्न अनिवार्य के अने अन्न, माटे खेती अनिवार्य छे. अने अथी, खेतीनो विरोध जैनधर्ममां शाने होय? ___ वली, खेती बाटली सावधानीथी अने पाटली हद सुधी करवानी मर्यादा व्रतधारी शुद्ध धावक ने माटेज छे. सामान्य जैन गृहस्थोने तो खती करवामां जरा पण वाध न होई शके. उपासकदशामा जे श्रावकोनां चरित्रो छे ते तो आदर्श श्रावकोनां छे. अने तेमने पण खेती करवानी छट हती, तो पछी सामान्य जन समूह, के जे आदर्श श्रावकनी कोटिमां न श्रावी शके, पण जेणे जैनधर्म अपनाव्यो होय, तेने तो खती करवामां शा वाध होई शके ? आ कालमां जैनधर्म अने कृषिकर्म नो प्रश्न थाय श्रेज । अनुचित छे. जीवन धारण पोपणना अंक मात्र पुराणा मार्गनी विरुद्ध कोई धर्म होई ज न शके, अने तेय हिन्दुस्तानमा

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