________________
पूज्य गांधी जी समय समय पर एक ही सन्देश सूत्र सुनाने हैं कि-"भारतीय संस्कृति का पुनरुद्धार करना ही होगा-एक बार उसका पूर्णतया मन्थन करना ही होगा तभी भारतीय संस्कृति की उज्जवलता के साथ मानव-संस्कृति नूतन रूप में निर्मित होगी। भारतवर्ष वैभवविलास-प्रधान की जगह पुनः धर्म प्रधान एवं कृषि-प्रधान बनेगा तभी वह अपनी असली स्थितिमत्ता को प्राप्त करेगा।" वस्तुतः कृषि एवं प्राध्यात्मिकता का अन्योन्य घनिष्ट सम्बन्ध स्थापित कर के जैनधर्म की सच्ची अहिंसा एवं यथार्थ तत्वज्ञान का परिचय विश्व को करा देने से ही विश्व का यथार्थ कल्याण हो सकता है। ऐसा होने से सम्पूर्ण जैन संस्कृति भारतीय संस्कृति को एवं भारतीय संस्कृति मानव संस्कृति (विश्व संस्कृति) को परिस्कृत, परिमार्जित एवं समुज्ज्वल बना देगी। तथा लोक स्वावलम्बन के यथार्थ सूत्र से परिचित होगा ५: विश्ववन्धुत्व की वास्तविक भावना जागृत होगी।
अति संक्षेप में यही जैनधर्म एवं कृषि-कर्म का स्वरूप है तथा इसी में प्रत्येक जैन नामधारी की सार्थकता एवं यथाथता है।
विनीत लेखकःकन्हैयालाल दक
समाप्त