Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 95
________________ [८१] यदि इस विषय को ऐतिहासिक दृष्टि से विचारा जाय तो हमें इस कर्मभूमि के सर्व प्रथम राजा अथवा जन्मदाता भगवान् ऋषभदेव के शासन-काल को स्मरण करना होगा। यदि कृषि आवश्यक वस्तु न होती तो भगवान् ऋषभदेव जो कि जन्मतः तीन ज्ञान के धारक थे, जिन्हेंोंने विश्व को स्व-- निर्वाहार्थ प्रत्येक कला एवं व्यवसाय की प्राथमिक शिक्षा दी थी-न देते । प्रभु ने जिम ७२ कलाओं का आविष्कार किया उसमें २६ वी कला कृषि' कला ही है। अथवा यों कहें कि प्रभु ने सम्पूर्ण भारतीय कृषि-शास्त्र का मन्थन 'कृषिकला' के के रूप में कर दिखाया, जिससे कि वर्तमान काल में भी सम्पूर्ण भारतवर्ष का निर्वाह चल रहा है। प्रभु ने यह सिद्ध करके बतला दिया था कि कृषि ही मानव-मात्र का जीवन है, विना कृषि के गृहस्थाश्रम धर्म संचालन दुष्कर है।। सम्प्रति भारतवर्ष में कतिपय प्रान्तों में जो तुधापीड़ितों के दुःखद आर्तनाद सुनने को मिल रहे हैं, उसका एक मात्र कारण भी मुझे तो कृषि का अभाव ही ज्ञात होता है। दलित वर्गने यह समझ कर कृषि करना कम कर दिया कि बड़े बड़े शहरों में मजदूरी, नौकरी तथा कुली आदि के धंधे करने ले जीवन-निर्वाह सुलभ होगा, तथा धनिक वर्ग ने अर्थ-प्राप्ति में लुब्ध एवं गृद्ध वनकर अपने बड़े बड़े हिंसासूलक व्यवसायों की ओर, सट्टे आदि व्यापारों की ओर अथवा दूसरे शब्दों में एक मात्र प्रार्थ प्राप्ति की ओर, फिर वह चाहे किसी प्रकार क्यों न हो-मूल लक्ष्य दिया, 'जेसके फल स्वरूप प्राचीन

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