Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 77
________________ [ ६६] . जीवनमा धारण पोषण अने सत्वसंशुद्धि अशक्य के अघटित रीते परावलंबी थई जाय.दाखला तरीके खेतीमां हिंसा रहेली छे अटले, खेती न करवाथी केटलांक प्राणीयोनुं सुख बधे छ: अथवा, शस्त्रधारणमां हिंसा रहेली छे. पण खेती के शस्त्रनो त्याग करनार वर्ग पोतानां जीवन निर्वाह तथा सत्वसंशुद्धिनी बावतमां अघटित रीते परावलंबी बनी जाय छे. जो पाखो मनुप्यसमाज मे धर्म रवीकारे तो मनुप्यजीवन अशक्यवत् बने अयश संभव के ग्रेटले, धर्म मानवसमाजनां अर्थ अने कामनी सिद्धिने विरोधी होवाथी अने धर्म समजगमां भूल थाय छे." (खंड पहेलो-चौथो-पुरुषार्थ ) खेती करवामां हिंसा थाय छे अम माननार विचार करे के कया कर्ममां हिंसा नथी ? 'जीवैः प्रस्तमिदं सर्व' अनुसार जीवन जीवq अ पण श्रेक हिंसाज छे ने? परन्तु जीवन ने जेम शद्ध अने विकृति रहित जीवीए तेमांज जीवननी सार्थकता छे. पाणीमां असंख्य जीवो छ अम जैनधर्म कहे छे-ग्रने आधुनिक विज्ञानशास्त्र पण श्रेनुं समर्थन करे छे-जैनशास्त्रमा अनु श्रेक उदाहरण प्रसिद्ध छे के पाणीना श्रेक टीपामांजेटला जन्तुओ छे अ बधाय जो कबुतरनु स्वरूप धारण करे तो पृथ्वी उपर समाय नहि, छतां जैनधर्म पाणी पीवानी मनाई करी . छ ? उलटं पाणीने गालीने, गरम करीने, शुद्ध करीने पीवानी सूचना प्रापेली छे. कारण के पाणी वगर जीवन धारण

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