Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 76
________________ [ ६८ ] ने केटला मोटा भुलावामां नाख्या छे ! जे कर्म वगर पृथ्वी पर मानव जातने जीववुं अशक्य छे. ते कर्मनो जैनधर्म विरोध करे छे, प माननार जैनधर्मने विकृतिनी कई कक्षाए लई जाय छे. तेनो ताग काढवो अशक्य छे. धर्मनां मुख्य त्रण पासा -धारण पोषण अने सत्वसंशुद्धि. खेती मां कया अंगथी बिरुद्ध छे ? वल्के, खेती ज समाजनुं धारण अने पोषण करे छे. सात्विक रीते रहनार, पृथ्वीमांथी ज पोतानी जरूरियात मेलवनार, वधारे लोभ न राखनार श्रमजीवी कृषिकार माटे तो कृषि अ ज धर्म छे. अ अ खेतीनो विरोध जैनधर्म तो शुं, पण कोई पण धर्म न करी शके. श्री किशोरलाल मशरूवाला "जीवनशोध" मां लखे छे "धर्मनी कासर तेना आचरनार करतां वधारे मोटा क्षेत्र व्यापारी होवाथी, ग्रे क्षत्रनी विशालता कई बावत मां केटली होय त्यां सुधी योग्य गणाय, तेनी से मर्यादा रहे छे. ये मर्यादा न समभवाथी, तारतम्य ( Sense of Proportion ) नो भंग थाय छे अने परिणामे धर्म श्राचरनार पोते पंगु वनी जाय छे. श्रे मर्यादानो, देश-काल वगेरेनी परिस्थिति प्रमाणे, संकोच विकास थाय. श्रेवी मर्यादाने जे प्रजा समझी शके छे अने पोताना जीवनमां तेने अनुकूल फेरफार करी शके छे, ते प्रजा जीवनमां टकी रहे छे अने आगल वधती रहे छे. ' मर्यादानी योग्यता समजवानी कसोटी ते श्री धर्मनुं स्वरूप. अवुं न ठरावनुं जोइये के जेथी तेने आचरनार व्यक्ति के वर्गनां

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