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[६६ ] उपासको श्रावक-जेश्रो बहोलो वेपार अनेखती-चलावता हता, तेओ वधा शुद्ध श्रावक धर्म पालीने मोक्षमार्गे गया अवी । __ वार्तायो प्राव छ. कृपिकर्म जो जैनधर्म ने मान्य न होत, तो
ग्रेवी कथानो जरूर आवत के कृषिकर्म-करनार लोको पापकर्मीयो छे. __वनस्पति अाहारनी वधारे तरफेण करतो धर्म कदाच जैनधर्मज छे. जनसमूह मांसाहार ओछो करतो थाय ते माटे स्पष्ट ज के के खती वधारवीज जोईये. प्राणीयोने खेतीना काममा लेवां जोईये अने कसाईखानामां जतां अटकारवा जोईए. येग्री मांस माधु थाय, अने हिंसा अोछी थाय. आ स्थिति होवादी अहिंसा प्रधान वनस्पति अाहारनी तरफेण करतो जैनधर्म कृपिनो विरोध शी रीते करे ? ___ उपरनी चर्चा उपरथी अम सहेजे मालूम पड़ी श्रावशे के खरा व्रतधारी श्रावकने पण, मात्र संकल्प-जीवो ने हणवानी इच्छाज खरी हिंसा के, अने प्रारभ हिंसा तो वाधक नथीज. जनोनी अहिंसानी मान्यतामा विकृति थवाधीज जैनधर्मने श्रने कृपिकमने विरोध में ग्रेधी भूल भरेली मान्यता फेलवा पामी छ .
हिंसानी कल्पना मात्र बाह्य हिसानी न हती परन्तु प्राभ्यन्तर हिंसानी हती. मनमां कपायो होय ग्रेज हिंसा छे अने तेश्रीज इद्रियनिग्रह की कयायोने निर्मल करतो जोईये. संकल्पहिना उपरजजेनशानोभार मुक्यो छे ते आ कथनने