Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 38
________________ [३४] रहे, व्यास मुनि भारत सावित्रिमा वधाने उद्देशी ने कहे छे के न जातु कामान्न भयान्न लोभात , धर्म त्यजेत जीवितस्यापि हेतोः । धर्मो नित्यः सुखदुःखे त्वनित्ये, जीवो नित्य: हेतुरस्य स्खनित्यः ।। अने इन्द्रियनिग्रह करीने कर्म आचरचु जोइये. विदुरनीति कहे छे त्रिविधं नरकस्येद द्वार....... ... .............। कामः क्रोधश्च लोभश्च, तस्मादेतत् वयं त्यजेत ।। अने शास्त्रोनो उद्देश पण श्रेज छे. धर्ममय जीवन केम गालव, निःश्रेयसने मार्ग प्रावतां विघ्नोमांथी केम बचq, अने जनसमाजनुं हित केम चधार अज शास्त्रोना उद्देश छे. अाधुनिक समयमां जे शास्त्रो प्रत्यारना समाजमे हितकर्ताप्रत्यारना समाजने मार्ग सूचक थई पडशे तेज जीवी शकशे. जीवनथी विरुद्ध धर्म उपदेशतां शास्त्रो, शास्त्रो रहेोज नहिं. हमेश वदलातां विचारोमा सनातन सत्यनो पडघो, दरेक क्षणे बदलाता मानवजीवननी समक्ष नित्य रहे तो धार्मिक विचार अज शास्त्रोपदेश छे. श्रापणे अमांशी घरां मेलववार्नु छे, अने घणुंज आचरवानुं छे. श्रीअरविन्द घोप गीता विशे लखतां कहे थे-जे वधाज शास्त्रोना अभ्यासने लागु पड़ी शके "But what we can do with profit is to seek in the Gita for the actual living truks it contains,

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