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लक्ष्यमा राखीनेज इच्छाविधिपरिमाणमा खेतीनुं परिमाण बांध पढ्युं हतुं जो गृहस्थने खेती सर्वथा निषिद्ध होत तो शुं उपासकदशां सूत्र अम लखत
तयाणंतरं च णं खेत्त्वत्युविहिंपरिमाणं करेछ । नन्नत्य पञ्चहिं हलसएहि नियत्तण-सइएणं इलेणं, श्रवसेसं सव्वं खेत्तवत्थुविहिं पञ्चक्खामि |
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जो खेती आनन्दने माटे सर्वथा निषिद्ध होत तो भगवान् ने अमुक हल राखीने अमुक जमीनमां खेती करवी श्रेवी - प्रतिज्ञा श्रापत खरा ?
श्रा रीते कर्मादानोनो अर्थ समजवानो छे. जे कर्म श्रनिवार्य होय ते तो कर्येज छुटको, परन्तु अ कर्म श्रसंयमथी न करवुं. जो बधेज खेती बन्ध भई जाय तो संसार कदी चाले खरो ? अने श्रावकने तो करवुं कराववुं सरखुंज के मेटले - खेती न करे अने बीजानी पासे करावी पण न शके फोडीकम्मे'नो श्रम कर के 'खेती करवीज नहिं' तो अर्थनी जरा पण संगति थती नथी. कारण के खेती न ज करवानी होय तो श्रानन्द श्रावक ने क्षेत्रवास्तु परिमाण करावेज केम ?
पहेलां, श्रानन्द श्रावकनुं व्रत ज जुग्रो. अनु व्रत स्थूलप्राणातिपातविरमणनुं छे. स्थूलप्राणातिपातविरमणनो अर्थ शुं ? योगशास्त्र सेनी व्याख्या करतां कहे छे
विरतिं स्थूल हिंसादेः द्विविधत्रिविधादिना । श्रहिसादीनि पञ्चाणुत्र
जगदुर्जिना ॥ प्र. २. लो. १८.