Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ [६३ ] तो मात्र संकल्पहिंसाथी ज दूर रहेवार्नु छे. ( पाहिं अक वात नोंध पात्र छे-के श्वेताम्बरो गृहस्थोने माटे स्थावर जीवोनी संकल्प हिंसा पण वाधक गणता नथी. जुवो में टांकेलो आवश्यक सूत्र-टीका फकरो-ज्यारे दिगम्बर गृहस्थो स्थावर जीवोनी पण संकल्प हिंसा ने त्याज्य गणे छे. प्रा मुद्दाने कृषि साथे कईज संबंध नथी) कृषि अनिवार्य छ, अने श्रावकोने ते करवामां हानि नथी श्रे स्पष्ट नीकलेलं. वली प्राधश्यक सूचनी माफक प्राणातिपात विरमणना अतिचारो वर्णवतां अतिभार पण वर्णवे छे. जुनो मुम्चन् बन्धं वधच्छेदापतिभारादिरोपणम् । भुक्तिरोधं च दुर्भावाझावनाभिस्वदाविशेत् ।।श्र.४; श्लो १६ अने आवश्यक सूत्र अने अनी व्याख्या ने लगभग शब्दशः अनुसरीने टीकाकार अतिभार विशे लखे छे चतुष्पदस्य तु यथोचितभारः किश्चिदूनः क्रियते हलशकटादिषु पुनरुचितवेलायामसौ मुच्यते इति चतुर्थः । अने पहेलांनी दलील अहिं पण लागु पडे छे के कृषि निषिद्ध होय तो हलमांधी योग्य काले बलदने छोडवा अवो नियम शा माटे करवामां आवे ? श्रा उपरथी निष्पन्न थाय छे के श्वेताम्बर शास्त्रोनी माफक ज दिगम्बर शास्त्रोमां पण गृहस्थोने कृषि कर्मनी छूट प्राप-- वामां आवेलीज हती. खेती विशेनी मुख्य दलीलो श्रावकना पाचार जीवनमाथी

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103