Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla
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आ उपरथी अम स्पष्ट पणे मालूम पडे छे के उपासकदशासूत्र, योगशास्त्र, आवश्यकसूत्र अने तेनी हरिभद्र सूरिनी व्याख्या बतावे छे के गृहस्थने जीवन धारणा माटे सावधानी पूर्वक खेती करवामां कोई हरकत नथी.
हवे, दिगरवरशास्त्रना अनुयायी उपासकोना आधारना नियमो जोइये, घने मां खेती विशे शुं अभिप्राय छे, ते तपासी.
ते माटे, 'सागारधर्मामृत' मां गृहस्थनी प्रवृत्तिनी आलोचना तपासवी घटे छे. सागारधर्मामृतना कर्ता आशाधर ( समय ई. स. १२५६ ) थे, अने ते दिगम्बर शास्त्र नो ग्रंथ छे सागारधर्मामृतमांथी नीचेनां अवतरणो तपासोसामान्येन पचागुव्रतानि लक्षयन्नाह—
•
विरति स्थूल हिसादे: मनोवाचोऽङ्गकृतकारितानुमतैः । क्वचिदपरेऽप्यननुमतैः पचहिंमाद्यणुव्रतानि स्युः ॥
- श्र. ४,
गा. ५.
व्याख्या करतां कहे छेइतो विस्तरः । हिसादित्वेन प्रसिद्धत्वाद्वा स्थूलो वधादि स्थूला हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिमहा इत्यर्थ' ।
स्थूलजीवादिविषयत्वान्मिथ्यादृष्टीनामपि
श्री व्याख्या उपर टांकेला श्रावश्यक सूचना अवतरणमां छे, तेनी जेबी ज छे. के जेने स्वमत ने परमतना अनुयायीओ हिंसा तरिके स्वीकारता होय तेज स्थूलहिंसा.

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