Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 62
________________ [५६] स्थूला-मिथ्याप्टिनामपि हिंसात्वेन प्रसिद्धा या हिंसा सा स्थूल• हिंसा । . . ............. भ्यः स्थूलहिंसादिभ्यो या विरतिनिवत्ति स्तामहिंसादीनि अहिंसासुनृता-स्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहान् पञ्चाणुव्रतानीति जिनास्तीर्थकराः जगदु प्रतिपादितवन्तः । ... वलि गृहस्थी केवी अहिंसा आचरवानी होय छे. तेनु निरूपण करतां योगशास्त्र जणावे छे के निरथिकां न कुर्वीत् जीयेयु स्थावरेवपि । हिसामहिसाधर्मः कांचन मोक्षमुपासकः ।। स्थावरा पृथिव्यम्बुतेजोवायुवनस्पयस्तेष्वपि जीवेयु हिंसां न कुर्वीत । कि विशिष्टां, निरर्थिको प्रयोजनरहितां, शरीरकुटुम्बनिर्वानिमित्तम् हि स्थावरेपु हिसा न प्रविपिता, या तु अनयिंका शीरकुटुम्बादिप्रयोजनरहिता तादृशीं हिसा न कुर्वीत । . अम कहीने स्पष्ट छट प्रापेली के के गृहस्थने शरीर कुटुस्व निर्वाह माटे करवी पडती हिंसा करवामां वांधो नथी. श्रावश्यकसूत्रनी टीकामां हरिभद्रसूरि स्थूल प्राणातिपातविरमणव्रतनी स्पष्ट व्याख्या करी वताचे छे, अने तेमां कृपिनु नाम पापी ने तेनी छूट प्रापे छे-जुओ नीचेना फकरो थूलगपाणाइवायं समणोवासगो पञ्चक्वाइ, से पाणाइवाए दुविहे पन्नत्ते तंजहा-सकप्पयो अ श्रारंभोश्र, तस्य समणोवासयो संकप्पयो जावजी. वाए पञ्चक्खाइ, नो प्रारंभश्रो, ..... • • थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएवं इमे पञ्च अयारा जाणियन्वा, तंजहा-धन्धे, यहे, . छविच्छेए, अहभारे, भक्त पाणबुच्छेए । सूत्रम् ।

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