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जो कोई गृहस्थ पोताने माटेज वापरवा गाडा राखे, तो ते ध्यान राखी शके, बलदन थती हानि ने रोकी शके अने अवी स्थल प्राणातिपातविरमण व्रतथी उगरी शके, या हेतुन लक्ष्यमा राखीने ज आनंदादि श्रावकोने पोताना वेपार अन उपयोग माटे गाडा राखवानी छट प्रापेली हती.
तेज प्रमाणे 'फोहीकम्में नो अर्थ समझवानो छ हजारो ग्रेकर जमीन उपर अंकज माणस खेती करे-करावे-अने अने माटे हजारो मजूरो रोके, अने मोटापाया उपर कृषिकर्म चलावे नो जमर स्थूल प्राणातिपात विरमणवतनोभङ्ग थायज, कारण के पछी धरती खेडनां लोभ अने असंयम बधे, अने अथी खेड करनारा मारणसो पाथी हद उपगन्त मजूरी करवाय, अन खेतीमां थती हिंसा पोछी करवा तरफ ध्यान प्रापवाने बदल धान्यलाम अने तेथी थता अर्थलाभ प्रत्येज दृष्टि रहे. खता करतां हिंसा तो जमर थाय छज, कारण के पृथ्वी उपर अन अन्दर रहेला अनेक जीवोनी हानी थाय छे, अने अमांय ज्यार हजारो कर उपर ग्रेक मारणसना नेतृत्व नीचे खेती थाय त्यार अंजीवहानी अोठी करवा तरफ लन्य ज न जाय. पण जो अ माणस पोताना कुटुम्ब निर्वाह माटे खेती करे तो तेना स्थूल प्राणातिपानविरमणवतनो मन यतो नश्री. खेती अनिवार्य छ, कारण के गृहस्थमात्र फलमूल साइने जीवी शकवाना नथी, पण ज्यारे खेती करवीज पड त्यारे यतनाथी करवी अने बहु मोटा पाया उपर न करवी फोहीकम्मे नो अर्थ छ. प्रा हेतुने