Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 61
________________ [ ५५ ] लक्ष्यमा राखीनेज इच्छाविधिपरिमाणमा खेतीनुं परिमाण बांधवू पड्युं हतुं जो गृहस्थने खेती सर्वथा निषिद्ध होत तो शु उपासकदशा सूत्र अम लखत तयाणंतरं च णं खेतवत्थुविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्थ पचर्हि इलसएहिं नियत्तण-सइएणं हलेणं, अवसेसं स०वं खेतवत्थुविहिं पञ्चक्खामि । जो खेती आनन्दने माटे सर्वथा निषिद्ध होत तो भगवान् अने अमुक हल राखीने अमुक जमीनमां खेती करवी अवी • प्रतिक्षा प्रापत खरा ? ___ आ रीते कर्मादानोनो अर्थ समजवानो छे जे कर्म अनिवार्य होय ते तो कर्येज छुटको, परन्तु अ कर्म असंयमथी न करवू जो वधेज खेती बन्ध थई जाय तो संसार कदी चाले खरो ? अने श्रावकने तो करवं कराव, सरखुज छे अटले श्रे खेती-न करे अने बीजानी पासे करावी पण न शके फोडीकम्मेनो अर्थ अम करी के 'खेती करवीज नहिं' तो अर्थनी जरा पण संगति थती नथी. कारण के खेती न ज करवानी होय तो श्रानन्द श्रावक ने क्षेत्रवास्तु परिमाण करावेज केम ? पहेलां, आनन्द श्रावकन व्रत ज जुओ. अनु व्रत स्थूलप्राणातिपातविरमणन छे. स्थूलप्राणातिपातविरमणनो अर्थ शु? योगशास्त्र अनी व्याख्या करतां कहे छेविरति स्थूल हिंसादेः द्विविधत्रिविधादिना । अहिंसादीनि पञ्चाणुव्रतानि जगदुर्जिनाः ॥ प्र २. श्लो. १८

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