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[३८] क्राइस्ट नी पूर्व ८०० वर्ष पहेलां ) हाल जेने अहिंसातुं अणुव्रत कहेवामां आवे छे तेना जेवा अक मंतव्यनी प्रथम स्थापना जैनो अथवा कोई अन्य धर्मानुयायीओ तरफथी करवामां प्रावी हशे. या कल्पनाथी आपणे वैदिक युगनी समाप्ति सुधी पाछल जई) छी-अने अहिं छान्दोग्य उपनिपना अंतिम भागमा अापणे इच्छेलु अहिंसा व्रत- प्रथम पगश्रीयु
आपणने मली आवे छे-जो के देखीती रीते ते मूलनी शरूआतनुं तो नथी ज. छान्दोग्य उपनिषद्नो ते भाग नीचे प्रमाणे छे-"प्राचार्यना धेर यथाविहित समयमां, यथाविधि, वेदनो अभ्यास करी ने जे गुरुना घेरथी पाहो आवे छे, तेणे पोतानी मेले पोताने घरे पवित्र स्थानमा ते पवित्र ग्रंथनो अभ्यास करवो; सत्यशील विद्यार्थीग्रोने भणाववा; पोतानी सकल शक्लियोनुं स्थान ते पात्माने वनाववो, पवित्र तीर्थो सिवाय अन्यत्र कोई पण प्राणानी हिंसा क.रवी नहि ते खरेखर पा प्रमाणे यावज्जीवन रही ब्रह्म लोक मेलवे छे, अने पुनः श्रावतो नथी; पुनः आवतो नथी.” ओनो अर्थ केजे मोक्षनी आकांक्षा राखे छे ते यज्ञ सिवाय अन्य पशुवध करी शके नहिं. अहिं ध्यानमा राख, जोइए के अहिं गृहस्थने उद्देशीने या अहिंसाना नियममुं वर्णन थाय छे.
"परन्तु त्यार पछीना उपनिपदोमां चतुर्थाश्रम पूर्ण विकास पामेलो जोवामां आवे छे. अने तेने माटे श्रापेला नीयमो जैन यतिना नियमो ने केटलेक अगे मलता आवे छे. जैनयतिनी