Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 45
________________ [४१] while none is true, none is wholly false हवे जैन ग्रन्थोसां घतावेलु हिंसा स्वरूप जोईए. जैनधर्म मुख्यत्वे तपप्रधान आचारधर्म छे. इन्द्रियनिग्रह अने कषायो ऊपरनो विजय से तो सूर छे. अटले आचारमां खास कठिनता होय से स्वाभाविक छे. अहिंसाने आचार'मां कवानो मुख्य प्रयत्न करनार जैनो, ग्रेटले आचारमां अमणे हिंसानो मुख्य उपदेश कर्योज होय श्रहिंसानुं श्राचरण करनारे जीव ने अजीव चीजोनी आलोचना पण करवीज पड़े अटले जीवाजीव विचारनी संमजरा पण जैन दर्शन मां सारी जग्या रोके छे. 73 जैन श्रमणने पांच महाव्रत तेथानां होय छे, तेमां प्राणातिपातविरमण प्रथम आवे छे, ग्रेटले के श्रहिंसाने प्रथम स्थान मले छे. आचारांग सूत्र कहे छे के: > १ से बेमिः - जेय अईया जे य पडुप्पन्ना जे य श्रागमिस्सा अरहन्ता भगवन्तो, सव्वे ते एवमाक्खन्ति एवं पन्नवेति एवं परूवेतिः - सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता न हन्तव्या न श्रज्जावेयव्वा न परिघेत्तव्वा न परियावेयव्वा न उदयव्वा । आचारांग० अ-१-४-१ | तुमं सि नाम त चैव जं 'हन्तव्वं' ति मन्नपि । तुमं सि नाम तं चैव जं 'ज्जावेयध्वं ' ति मन्नसि,'

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