Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 36
________________ [ ३२ ] वीजाना अनुयायी आनन्दे सिद्ध कयु. ___ मध्यकालीन संतो अने विचारकोना उदाहरण ल्यो, कबीर, तुकाराम. नरसया, आ गृहस्थीग्रो साधुओथी पण उच्चतर जीवन गालता हता.सत्य अने प्रेम प्रेमने जीवनना महामंत्र हतां. वणकर के भिनु वन्ने अक सरखी रीते धर्म आचरी शके छे अनी प्रतीति अपना जीवन उपरथी थई शके छे. सत्य अने प्राणीमात्र प्रत्ये प्रेम अ भावना ज्यां होय रे जीवन धर्ममय थवानुं ज. पछी अ आचरनार भिनु होय के गृहस्थ होय के राजा होय. जीवनना के अङ्ग साथे धर्मने विरोध नथी. अत्यारना संतनो दाखलो ल्यो-महात्मा गांधीजीअ स्पष्ट दर्शाव्यु छे के राजकारण से कुटिल चाललाजी नथी परन्तु अमा पण सत्य अने अहिंसाने स्थान छे. जीवननुं जे अंग धर्मथी विमुख थतुं जाय छ ते अते माणसने विनाश तरफ टोरी जाय छे. अनेा दाखलो के पापणी अाधुनिक राजनीति, आपणी आधुनिक संस्कृति प्रगतिनी भावनाछेल्ला, सैकाथी अवी मान्यता प्रवर्ती रही छे के धर्म या कोई कपोकल्पित वस्तु छे अज्ञान अने प्रमाण लोको ज अने माने छ, नीतिना बंधन जेवी कई चीज़ छे ज वहि, राजकारणमा तो जे वीजाने छेतरी सके तेज कुशल आपणे आज अवी संस्कृतिनी कल्पना करी रह्या छीने के जेमा माणसने सहाय इन्द्रियसुख मले अने आज मान्यताओ अाज समस्त विश्वने विनाशना पंथे घसडी रही छे. शांतिपर्व-महाभारत मां, ययाति राजा सुखभोगवीने निराश थइ कहे छे

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