Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 34
________________ कृषिकर्म भने जैनधर्म -::::()::::~-~~~ जीवन अपने धर्मनो सम्बन्ध कोई विचारके उच्छेद्यो नथी. आदर्श जीवन जीवधुं अटले धर्मने चरणमा मुकवो. निश्रेयसनी प्राप्ति माटे या जीवन मल्युं छे अने अनी द्वारा धर्म शाचरीने मुक्ति साधी शकावानी है. जीवनना केक गमां पवित्रता रहेवी जाइए. धर्म से मात्र जङ्गलमां जइने श्राचरवानी चीज नर्थी परन्तु समाजसेवा माटे - जनकल्याण माटे -छे. धर्मनो अर्थ केवल वाह्य क्रियाकांडनो नथी, परन्तु व्यापक छे. बाह्य अने आभ्यन्तर बन्ने प्रकारनी शुद्धि होयत्यारे ज धर्म श्राचरी शकाय. मनुस्मृति ग्रने ग्रा. हेमचन्द्रना योगशाखनी, धर्मनी व्याख्या जुनो विद्वद्भिः सेवितः सद्भिर्नित्यमद्वे परागिंभिः । हृदयेनाभ्यनुज्ञातो यो धर्म स्तं निबोधत ॥ - मनुस्मृति, य २ श्लो. १,

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