________________
[ ? ]
लोग, जो अपने धर्म का पालन करने के लिए दूसरों को चलात् अधर्म में प्रवृत्त करेंगे, क्या धर्मात्मा कहे जा सकेंगे ?
धर्म का उद्देश्य केवल पारलौकिक शांति, सुख नहीं है । हलौकिक शांति, सुख और सुव्यवस्था भी धर्म का लक्ष्य है । परलोक, इस लोक पर अवलंबित है और इस लोक की सुख-शांति कृषिकर्म पर बहुत कुछ अवलंबित है । श्राचार्य सोमदेव सरि कहते हैं
'तस्य खलु संसारसुखं यस्य कृषिधेनवः शाकचाट' सद्मन्युदपानं च || टीका-तस्य गृहस्थस्य खलु निश्वयेन सुखं भवति यस्य किं ? यस्य गृहे सदैव कृषिकर्म क्रियते तथा धेनवो महिष्यो भवन्ति
1
-- नीतिवाक्यामृत, पृ. ६३ !
अर्थात् उस गृहस्थ को निश्चय ही सुख की प्राप्ति होती है, जिसके घर में सदैव खेती की जाती है, तथा गायें और भैंस होती है ।
-
आचार्य सोमदेवजी यद्यपि स्पष्ट रूप से खेती और पशुपालन करने का विधान नहीं करते, ऐसा करना साधु के आचार के विरुद्ध है, तथापि उनका श्राशय एकदम स्पष्ट है। वे परोक्षरूप से कृषि और पशुपालन का गृहस्थ के लिए समर्थन करते हैं । ऐसी दशा में यह कैसे कहा जा सकता है कि खेती करना श्रावकधर्म से विरुद्ध है । अतपत्र प्रारंभ