Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 27
________________ [ २३ ] भवति ।' अर्थात् कृषि और पशु-पालन आदि कार्यो से वैश्य होता है । कृषिकर्म वैश्यों का प्रधान कर्त्तव्य है, इस सम्बन्ध में अधिक उद्धरणों की आवश्यकता नहीं है । यही बात दूसरे शब्दों में इस प्रकार कही जा सकती है कि जो वैश्य कृपि, पशुपालन और वाणिज्य रूप वैश्योचित कर्म नहीं करता वह अपने वर्ण से च्युत होता है । वर्णव्यवस्था की दृष्टि से उसे वैश्य नहीं कहा जा सकता । कृषिकर्म के सम्बन्ध में मुख्य-मुख्य बातों का यहाँ तक विचार किया गया है । इससे यह भलीभाँति सिद्ध है कि कृषिकर्म, श्रावकधर्म को बाधा नहीं पहुँचाता | हॉ जो श्रावक गृहवास का त्याग करके, प्रतिमा धारण करके, विशिष्ट साधना में अपना समय व्यतीत करने के लिए उद्यत होते हैं, वे जैसे अन्यान्य आरंभों का त्याग करते हैं, उसी जो श्रावक व्रतरहित प्रकार कृषि का भी त्याग कर देते हैं । हैं या व्रत सहित होने पर भी आरंभत्याग प्रतिमा की कोटि तक नहीं पहुँचे हैं, उनके लिए कृषिकर्म त्याज्य नहीं है । कृषि और अन्य आजीविकाएँ अगर आजीविकाओं पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार किया जाय तो यह प्रतीत हुए बिना नहीं रहेगा कि व्याजखोरी आदि अन्य आजीविकाओं की अपेक्षा कृपि श्राजीविका • <

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