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[ १० ] है। खेती करने के भाव से पृथ्वीकाय आदि की हिंसा करने वाले किसान की अपेक्षा, मछली आदि न मारने वाला किन्तु मारने का संकल्प करने वाला मच्छीमार अधिक पापी है।
वास्तव में संकल्पी हिंसा में परिणाम अत्यन्त उग्र और दुष्ट होता है, प्रारंभी हिंसा में नहीं होता। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि खेती करने से श्रावक का अहिंसाणुव्रत खंडित नहीं होता।
खेती और महारंभ दुसरा प्रश्न अल्पारंभ-महारंभ का है। कुछ लोगों की साधारण धारणा है कि खेती महारंभ का कार्य है, अतएव वह श्रावक के लिए हेय है। किन्तु हमें यह देखना है कि क्या खेती सचमुच महारंभ का कार्य है?
आजकल जनता में अल्पारंभ-महारंभ के संबंध में अनेक भ्रम फैले हुए हैं । जैनधर्म के उभट विद्वान् स्वर्गीय प्राचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज ने इस विषय में बहुत विस्तृत और विचारपूर्ण व्याख्यान किया है। हम पाठकों से उनके इस संबंध के व्यास्थान पड़ जाने का आग्रह करते हैं। उन्होंने सन् १६२७ में कहा था
'मित्रो । एक प्रश्न मै तुम्हारे सामने रखता हूँ। बतायो खेती करने में ज्यादा पाप है या जुया खेलने में? ऊपर की छठि से जुड़ा (सहा) अल्प पाप गिना जाता है। इसमें किसी