Book Title: Kriyasara
Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar
Publisher: Sandip Shah Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ स्त्री में वैश्य से उत्पन्न हुए पुरुष के ही मातृ पक्ष एवं पितृ पक्ष ये दोनों कुल विशुद्ध है। माता के वंश परम्परा को जाति तथा पिता से वंश परम्परा को कुल कहते हैं । ब्राह्मणी में क्षत्रिय से उत्पन्न सन्तान, ब्राम्हणी में वैश्य से उत्पन्न सूत चैदेहिक आदि वर्ण रहिन है और वर्ण से रहित पुरुष, जाति से रहिस पुरुष जिन दीक्षा ग्रहण का अधिकारी नहीं। तात्यर्यार्थ-सज्जाति ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य जिनके वर्ण संकर, वीर्य संकर तथा जाति संकर का दोष न लगा हो अर्थात् जिसका जाति एवं कुल शुद्ध है वहीं जिन दीक्षा का पात्र है । तदन्तर जिसके अंग-भंग न हो अथवा अंग अधिक न हो वही दीक्षा का पात्र है जैसा कि कहा है : "यो रत्नत्रय नाशः स भङ्गो जिनवरैर्निर्दिष्टः । तथा शेष भलेन पुनः शेषखण्ड मुण्डवात वृषणादि भंगेन न भवत्ति सल्लेखनाह लोक दुगुच्छा भयेन निर्ग्रन्थरूप योग्योन भवति ॥ २२४-११॥ प्र. सा./चा. अ." अर्थात् तथा शरीर के अंग भंग होने पर मस्तक भंग, शिर भंग या लिंग भंग (वृपण भंग) वात-पीड़ित आदि शरीर की अवस्था होने पर कोई समाधि मरण के योग्य अर्थात् लौकिक में निरादर के भय से निन्ध भेष के योग्य नहीं होता और भी आगे कहा है कि: लोभि-क्रोधि-विरोधि-निर्दय-शपन्, मायाविनां मानिनां। कैवल्यागम धर्म-संघ विबुधा वर्णानुवादामनाम् ॥ मुंचामो वदतां स्वधर्म ममलं सद्धर्म विध्वंसिनां। चित्त क्लेश कृतां सतां च गुरुभिर्देया न दीक्षा क्वचित् ॥ ४१ ॥ पात्रापात्र भेद दा. शा. अर्थात् जो लोभी हो, क्रोधी हो. धर्म विरोधी हो, निर्दयता से दूसरों को गाली देता हो, मायावी तथा मानी हो. केवल , धर्म, आगम, चतुर्विध संघ तथा देव इन पर दोपोरोपण करता हो, 'मौका आने पर मैं धर्म छोड़ दुगां' ऐसा कहता हो, सद्धर्म नाश करने वाला, मज्जनों के चित्त में क्लेश उत्पन्न करने वाला हो उसे गुरुजन कदाचित् भी दीक्षा नहीं देखें ॥ कुल-जाति-वयो-देह-कृत्यबुद्धि-क्रुधादयः। नरस्य कुत्सिता व्यङ्गास्तदन्ये लिङ्ग योग्यता ५२ यो. सा. चा. अ. अर्थात् जिनलिंग ग्रहण में कुकुल, कुजाति, कुवय, कुदेह, कुबुद्धि. और क्रोधादिक कपाथ ये मनुष्य के जिनलिंग-ग्रहण में व्यंग है भंग है अथवा बाधक हैं । इनसे CONORATORIAL 26 MIDROIw पामगाMIIA

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100