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अर्थ विशेष- ग्रह बल-बली ग्रह का तात्पर्य होता है अच्छा साथी मित्र ग्रह या अच्छी दृष्टि, शुभ राशि में हो, शुभ ग्रह के बीच में हो, शुभ ग्रह के अंश में हो, उच्च या मित्र नवांश में हो।
जो ग्रह उच्च मूल त्रिकोण (५३ स्थान : भाव), स्वगृहों या मित्र गृही हो या स्व नकंशा द्रेष्काण आदि वर्ग में हो, ग्रह जो उच्च और नीच के घर में हो वह भी बलवान होता है ।
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(1) बली ग्रहः- उदित ( उदय की प्राप्त ) स्वक्षेत्री, मित्रक्षेत्री, उच्च मूल त्रिकोण या वर्ग में स्त्रवर्ग या मित्र के वर्ग में हो या उपर्युक्त बताये प्रकार से हो ।
(२) जब यह की किरणें पूर्ण तेज मय हों चाहें वह शत्रु आदि राशि या अंश
में हो
(३) चन्द्र को जब पूर्ण पक्ष प्राप्त हो पूर्ण चन्द्र हो ।
(४) सूर्य को जब दिग्बल प्राप्त हो अर्थात् दशम घर में स्थित हो ।
(५) दूसरे पंच तारा जब वक्री हो एवं कान्ति निर्मल हो (सूर्य से सप्तम स्थान में स्थित ग्रह पूर्ण बली होता है। )
तात्पर्य दीक्षा काल में मध्यम बली शनि, पूर्णबली बुध एवं लग्न स्थान में अबली शुक्र को दशा में दीक्षा का मांगलिक कार्यक्रम करना चाहिए ॥ २७ ॥
ग्रह बलाबल :
अट्टिक्कारस छठ्ठम दुग पणसंठो सणी बल विहूणो । मुक्तिगओ च सत्तम दसमो य गुरु हवे बलवं ॥ २८ ॥
अन्वयार्थ - (अदिक्कारस) आठवां, ग्यारहवां (रुद्रम) छन (दुर्गा) दूसरा (पणसंटो) और पांचवां (सणी) शनि (अल विहूणो) बल विहीन होता है (मुक्तिगओ) मुक्तिगत यानि प्रथम स्थान गत ( चड) चौथा ( सत्तम) सातवां (दसमो य) और दसवां (गुरु) गुरु ( बलवं) बलवान (हवे ) होता है ॥२८ ॥
अर्थ - आत, ग्यारह छठवां, दूसरा और पांचवां अनिष्ट कारक शनि हो प्रथम स्थान तथा चौथा सातवां और दसवां गुरु बलवान होता है ।।२८ ॥
छठ्ठो दसमो सो तह अबलो सुक्को सुहो वयग्गहणे । दो तय पंच छकारसमो तह बुहो य सुहो ॥२९ ॥
अन्वयार्थ - (छठ्ठी) छठवां (दसमो) दसवां ( तह) तथा (सुक्को) शुक्र ( अबलो) अबली/यलहीन होता है (दो) दूसरा ( तइय) तीसरा (पंच) पाचयां (छट्ठे कार समो तह) छठवां और ग्यारहवां (बुहो) बुध ( बयरगहणे) व्रतग्रहण करने में (सुहो) शुभ होता है ॥ २९ ॥
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