________________ दीक्षादानदिक माचार्यकार्यमाचर्यमिति गणसमक्ष भासमाणेन गुरुणा समयमाणपिच्छग्रहणलक्षणमाचार्यपदं गृह्णयात् / अनन्तरं अथ आचार्यपदनिष्ठापनकिया.........शान्तिभक्तिकायोत्सर्ग करोमि सुमूहूर्ते दाता शान्तिकं गणधरवलयानं च यथाशक्ति कारयेत् / तत: श्रीखंडादिना छटादिकं कृत्या आचार्य पदयोग्यं मुनिमासयेत् / आचार्यपदप्रतिष्ठापनक्रियायों इत्याधुच्चार्य सिद्धाचार्य भक्ति पले त् ।'ॐ ह परमसुरभिद्र व्यसन्दर्भपरिमलगर्जतीर्थाम्बसम्पूर्णसुवर्णकलशपंचकतोयेन परिषेचयामीति स्थाहा'' इति पठित्वा कलशपंचकतोयेन पादोपरि सेचयेत् / ततः पंडिताचायों "निर्वेद सौष्ठ" इत्यादि महर्षिस्तवनं पठम् पादौ समंतात्परामृश्य गुणारोपणं कुपांत् / ततः ॐ हूं णमो आइरियाणं आचार्यपरमेष्ठिन् ! अत्र एहि एहि संवौषट् आवाहनं स्थापनं सन्निधीकरणं 1 ततश्च "ॐ हं णमो आइरियाणं धर्माचार्याधिपतये नमः" अनेन मंत्रेण सहेन्दुना चन्दनेन पादयोयोस्तिलकं दधात् / ततः शान्तिसमाधिभक्की कृत्वा गुरुभक्तया गुरुं प्रणम्योपविशति / तत उपासकास्तस्य पादयोरष्ट तयोमिष्टिं कुर्वन्ति / यतयश्च गुरुभक्तिं दत्वा प्रणमन्ति / स उपासकेध्य आशीषदि दद्यात् / इत्यावार्यपददानविधिः / अन्यच्च-ॐ हां ही श्री अहं हं स: आचार्याय नम :- आचार्यवाचनामंत्र; 1 ॐ ह्रीं श्रीं अहं हं स: आचापि नम:- आचापत्रः / "इति श्री" शुभ मुहूर्त में पद देने वाला शान्तिकारक गणधरवलय की पूजाशक्ति प्रमाण पूर्वक करावे / तत्पश्चात् श्री खण्ड आदि के ढेर को स्वस्त्यादि करके आचार्य पद प्रतिष्ठा के योग्य मुनि को बैठाये और "आचार्य पद प्रतिष्ठापनादि" का उच्चारण करके सिद्ध भक्ति पढे / ॐ हू.........इत्यादि पढ़कर पंच कलस के जल से चरणों पर सेंचन का अप्रक्षाल करे / उसके बाद पंडिताचार्य "निवेद सौष्ठ" इत्यादि महर्षि स्तोत्र पढ़कर पाद प्रक्षाल आदि सम्पूर्ण क्रिया करके गुणों का आरोपण करे / तदनन्तर ॐ है.........इत्यादि आवाहनन् स्थापन सन्निधीकरण मंत्र पढ़ने के बाद "ॐ हं मी.....इति मंत्र से चन्दन से पादद्वय/चरण गुगल पर तिलक करें और बाद में शान्ति भक्ति और समाधिभक्ति करके गुरु की भक्ति से गुरु को प्रणाम कर/नमस्कार कर बैठ जाये / उसके बाद उसकी आचाय की, उपासना कहने वाले करते है और अन्य यति के द्वारा गुरु भक्ति से नमस्कार करते हैं / वह आचार्य उपासकों के लिए आशीवांद प्रदान करे / इस प्रकार आचार्य पद प्रदान की विधि समाप्त हुई / EVINORIAHINIDIOHITA 104 TAITIRIOTI