Book Title: Kriyasara
Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar
Publisher: Sandip Shah Jaipur
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अयं दशा संयमनिवृत्ति शीलता संस्कार इह मुनौ स्फुरतु ॥11 # अयं चतुः संज्ञानिग्रह शीलता संस्कार इह मुनौ स्फुरतु ॥12 ॥ अयं पंचेन्द्रिय जय शीलता संस्कार इह मुनौ स्फुरतु ॥13॥ अयं दशधर्मधारण शीलता संस्कार इह मुनौ स्फुरतु ॥14 ॥ अयमष्टादशसहस्त्रशीलता संस्कार इह मुनौ स्फुरतु ॥15 ॥ अयं चतुरशीति लक्षगुण संस्कार इह मुनों स्फुरतु ||16 || इति प्रत्येकमुच्चार्यं शिरसि लवंग पुष्पाणि क्षिपेत् ।
अर्थात् इन प्रत्येक मंत्र को बोलते हुए आचार्य दीक्षक के मस्तक पर पुष्पादि क्षेपण करके संस्कार करें। फिर निम्न मंत्र पढ़कर दीक्षक के मस्तक पर पुनः पुष्प डालें । णमों अरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं ॐ परम हंसाय परमेष्ठिने हंस हंस हं ह्रां है ह्रौं ह्रीं हैं ह्र: जिनाय नमः जिनं स्थापयामि संवौषट् ॥
अथ गुर्वावलि
स्वस्ति श्रीषीरनिर्वाण संवत्सरे 24 तिथौ
पक्षे
मूल
. मासानां पासोत्तमे वासरे क्षेत्रे तीर्थकर शुभ वस्तिकास्थाने मूलसंघे संनगणे पुष्कर श्रीकुन्दकुन्दाचायांदि परम्परायां आचार्य श्री शांतिसागर तत्शिष्याः श्री वीरसागराचार्य तत्शिष्याः श्री धर्म सागराचार्य तत्शिष्याः नामधेयः त्वं
तत्शिष्या श्री शिवसागराचार्य
शिष्यसि ।
--PLE.IN....
नोट :- अपनी गुरु परम्परानुसार दीक्षा दाता खोले । अथोपकरण
मासे
पिच्छी प्रदान
णमो अरहंताणं भी अन्तेवासिन् ! षड्जीवनिकाय रक्षणाय पादवादि गुणोपेतमपिच्छोपकरणं गृहाण गृहाण इति पिच्छिकादानम् ।
शास्त्रदान
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ॐ णमो अरहंताणं मतिश्रुतावधिमनः पर्यय केवलज्ञानाय द्वादशांग श्रुताय नमः भो अन्तेवासिन् ! इदं ज्ञानोपकरणं गृहाण गृहाण ॥ इति शास्त्रदानं ॥

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